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मुसलमानो के लिए जुमे का दिन काफी अफ़ज़ल है जुमे के दिन का ख़ास अहतमाम किया जाता हैं जुमे के दिन की कई सारी सुन्नते भी है जैसे की गुसल करना नाखून काटना और साफ सुत्रे कपडे पहेन के मस्जिद जाना, अदि अल्लाह ने मुबारकबाद देने के तरीके बताये हैं . हमें वैसा ही करना चाहिए जैसे ईदैन की मुबारकबाद के लिए दुआ सिखाई “तकब्बलहि व मिन्ना व मिनकुम” (अल-मुग़नी 2/259) लेकिन जुमाह के लिए ऐसा कुछ नई फ़रमाया लिहाज़ा ये बिदअत है जुमाह मुबारक बोलना नबी से या सहाबा से साबित नहीं ही किसी हदीस में भी नहीं है …

नबी सल्ल० ने दीन कहा तक सिखाये वह तक हम सिकने है नबी से आगे नहीं बढ़ना है….क़ुरान ,सूरह फ़ुरक़ान (आयत न० 27) में अल्लाह स्वत् कहते है “और उस दिन ज़ालिम शख्स अपने हाथ चबा चबा कर कहेगा के हाय काश के मैंने नबी करीम सल्ला० की राह इख़्तेयार की होती ”.
आयेशा राज़ी० रिवायत करती है की नबी करीम सल्ल० ने फ़रमाया की जिसने हमारे इस दीन में कुछ ऐसी बात शामिल की जिसमे हमारा अमल नहीं है वह मरदूद है {सहीह अल बुखारी , हद-2697 ,सहीह मुस्लिम , हद -1718.}

अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ि० फरमाते हैं : तमाम बिद्दतें गुमराही है अगरचे “बा -ज़ाहिर वह, लोगों को अच्छी लगें ”.{सुनन कुबरा बैहक़ी (हदीस 138).}

जुम्मा मुबारक कहना अल्लाह के रसूल सल्ल० से साबित नहीं है और जो कहते है, वो सहीह हदीस से साबित करके बताएं, ऊपर क़ुरान और हदीस की रौशनी से ये पता चला के अपनी तरफ से कोई काम करने में कोई फायदा नहीं है और जो ऐसा करता है वो क़यामत के दिन रुस्वा होगा के जो अल्लाह के रसूल सल्ला० हमें बता के नहीं गए हमने वो काम क्यों किया…. जाजकुमुल्लाह खैर

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