एक मरतबा हज़रत उमर रज़ि० अ० अपनी बेटी हज़रत ह़फ़्स़ा रज़ि अ० के घर तशरीफ़ लाये तो बेटी ने कहा कि ऐ अब्बा जान :अब आप बूढ़े हो गये हैं।मुल्को के वफ़्द आप से मिलने आते हैं। बड़े बड़े बादशाहों के वफ़द आते हैं।अब आप अच्छा खाना खाया करें, अच्छा लिबास पहना करें और कोई नौकर रख लें जो आप की ख़िदमत किया करे,जिससे आप को राहत पहुंचे। हज़रत उमर रज़ि० अ० ने जवाब में फ़रमाया ,ऐ बेटी, तुझे पता है कि हुज़ूर स० अ० दुनिया से तशरीफ़ ले गये और आप स० अ० ने कभी पेट भर के खाना नहीं खाया।कहने लगी :हाँ मुझे पता है ।
फ़रमाया ,तुझे पता है सुब़्ह खाया तो शाम को न खाया,और शाम को खाया तो सुब्ह को न खाया।कहने लगी :हाँ। फ़रमाया बेटी तुझे याद है कि हुज़ूरे अकरम स अ० के पास एक ही जोड़ा होता था ,जब गंदा हो जाता था तो ख़ुद ही धोते थे, और धोकर उसे खुश्क करते थे, यहाँ तक कि नमाज़ का वक़्त हो जाता था और हज़रत बिलाल रज़ि अ० अज़ान देकर कहते थे या रसूल अल्लाह: अस्सलात । आप स अ० के कपड़ें खुश्क न होते थे ।आप स० अ० इंतिज़ार करते थे, जब आप स० अ० का जोड़ा खुश्क हो जाता था तो जाकर नमाज़ पढ़ाते थे।
इसके बाद हज़रत उमर रज़ि० अ० ने इरशाद फ़रमाया कि ऐ बेटी ,सुन: मेरी और मेरे साथियों की मिसाल ऐसी है जैसे तीन राही ,तीन मुसाफिर चले।पहले एक चला और चलते चलते मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा।फिर दूसरा चला और वह भी चलते चलते मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा।फ़रमाने लगे कि अब मेरी बारी है। अल्लाह की क़सम मैं हुज़ूरे अकरम स० अ० के तरीक़े से नहीं हटूंगा।और अपने आपको इस मशक्कत पर रखूंगा।यहाँ तक कि अपने नबी स० अ० से जाकर मिल जाऊँ।मेरे दो साथी एक जगह पहुंच चुके हैं।अब मेरी बारी है, मुझे भी पहुंचना है।
दोस्तों, इस बात से हमें पता चलता है कि हमें अपना काम ख़ुद ही करना चाहिए. इंसान को हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि नेक रास्ते पर चले और सादगी की ज़िन्दगी गुजारें. चलते-चलते हम आप सभी से ये गुज़ारिश करना चाहेंगे कि अभी सर्दी का मौसम चल रहा है और बहुत से ग़रीब बाशिंदे ऐसे हैं जो मोहताज हैं. ऐसे में अगर आप किसी की मदद कर सकते हैं तो ज़रूर करिए. आप चाहे किसी को गर्म कपड़े दे दें या कुछ और तरह से किसी की मदद करें.