संयुक्त राष्ट्र / तेहरान | 23 जून
ईरान ने रविवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में अमेरिका पर “कूटनीति को नष्ट करने” का आरोप लगाया और स्पष्ट कर दिया कि अब जवाब का समय, तरीका और पैमाना उसकी सैन्य कमान तय करेगी।
ईरान के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत अमीर सईद इरवानी ने कहा, “हमने अमेरिका को बार-बार चेताया था कि वह युद्ध के इस दलदल में न गिरे। लेकिन उन्होंने खतरनाक रास्ता चुना और अब हमें जवाब देने का अधिकार है।”
ईरान की यह तीखी प्रतिक्रिया अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों — फोर्दो, नतांज़ और इस्फ़हान — पर ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत की गई हवाई कार्रवाई के बाद आई है।
“अमेरिका ने बहुत बड़ी रेड लाइन पार की है” — ईरान
तेहरान ने अमेरिकी हमले को “एक बहुत बड़ी रेड लाइन को पार करना” बताया और कहा कि यह केवल ईरान पर नहीं, बल्कि समूचे क्षेत्र की स्थिरता पर हमला है। ईरानी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि उनका जवाब “उचित, मापित और निर्णायक” होगा — लेकिन इसका स्वरूप अब सेना तय करेगी।
ईरानी राजनयिकों का कहना है कि इस हमले से न केवल उनका परमाणु कार्यक्रम प्रभावित हुआ है, बल्कि यह अमेरिका-ईरान संबंधों को “बातचीत के मोड़ से युद्ध की ओर” धकेलने वाला कदम है।
यूएस रक्षा मंत्री: “हम युद्ध नहीं चाहते”
हालाँकि अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने वॉशिंगटन में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अमेरिका “ईरान के साथ युद्ध नहीं चाहता।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमला केवल परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने के लिए था, और यह “अमेरिकी प्रतिरोधक क्षमता” का संदेश था।
हेगसेथ ने कहा, “हमने बहुत स्पष्ट कर दिया है कि यह हमला सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं है। हमारा लक्ष्य केवल उस खतरे को खत्म करना था जो तेज़ी से उभर रहा था।”
वाशिंगटन से कूटनीति फिर शुरू करने का संकेत, लेकिन तेहरान ने नकारा
हालाँकि ट्रंप प्रशासन की ओर से बातचीत फिर शुरू करने का संकेत दिया गया है, लेकिन ईरान ने इसे खारिज कर दिया है। तेहरान ने कहा है कि “अब कूटनीति की कोई गुंजाइश नहीं बची है” और मौजूदा हालात में “शांति के लिए रास्ता अमेरिका ने खुद बंद किया है।”
क्षेत्र में तनाव का नया चरण
इस पूरे घटनाक्रम के बाद खाड़ी क्षेत्र में तनाव अपने चरम पर है। होर्मुज़ जलडमरूमध्य को लेकर ईरानी संसद पहले ही प्रतिबंध की मंज़ूरी दे चुकी है और अब अंतिम फैसला सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल पर टिका है।
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले 48 घंटे क्षेत्रीय स्थिरता, ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक कूटनीति के लिए निर्णायक होंगे।