सऊदी अरब ने दशकों पुराने ‘क़फ़ाला’ यानी स्पॉन्सरशिप सिस्टम को समाप्त करने की घोषणा की है। अब विदेशी कामगार अपने नियोक्ता (क़फ़ील) पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहेंगे।
नए सिस्टम में बदलाव
• कामगार अब बिना क़फ़ील की अनुमति नौकरी बदल सकेंगे।
• देश छोड़ने के लिए क़फ़ील की अनुमति जरूरी नहीं होगी।
• कानूनी सहायता और कामगारों के अधिकार सुनिश्चित होंगे।
• वेतन, काम के घंटे और अन्य शर्तें स्पष्ट रूप से तय होंगी।
क़फ़ाला क्या था?
क़फ़ाला एक नौकरी स्पॉन्सरशिप सिस्टम है, जिसमें विदेशी कामगार स्थानीय नियोक्ता के अधीन रहते हैं। बिना अनुमति नौकरी बदलना या घर लौटना संभव नहीं था, और पासपोर्ट अक्सर नियोक्ता के पास रहता था।
सऊदी अरब का मकसद
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विज़न 2030 के तहत देश को आर्थिक और व्यावसायिक हब बनाना है। क़फ़ाला सिस्टम को हटाकर विदेशी निवेश और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करना मुख्य उद्देश्य है।
खाड़ी देशों में रोजगार
जीसीसी देशों (सऊदी अरब, यूएई, ओमान, बहरीन, क़तर, कुवैत) में लाखों भारतीय कामगार रोजगार पाते हैं। 2022 में क़तर विश्व कप के लिए हज़ारों विदेशी कर्मचारियों की जरूरत पड़ी थी।
भारतीय कामगारों और भारत को लाभ
• खाड़ी देशों की मजबूत मुद्रा में बचत अधिक मूल्यवान होती है।
• 2023 तक जीसीसी देशों से भारत को लगभग 120 अरब डॉलर का रेमिटेंस मिला।
• सबसे अधिक भारतीय यूएई और सऊदी अरब में रहते हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत से खाड़ी देशों में पलायन ब्रिटिश काल से चला आ रहा है। 1970 के दशक से यह माइग्रेशन इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। तेल की खोज के बाद कामगारों की संख्या तेजी से बढ़ी।