भारत के औषधि नियामक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने देशभर की सभी दवा निर्माण कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे जनवरी 2026 तक अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों (WHO-GMP) का पालन सुनिश्चित करें। यह कदम हाल के महीनों में खांसी की जहरीली सिरप से बच्चों की मौत के मामलों के बाद उठाया गया है, जिसने भारत की औषधि उद्योग की साख पर सवाल खड़े कर दिए थे।

सीडीएससीओ ने साफ किया है कि अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय किए गए मानक सभी दवा कंपनियों के लिए अनिवार्य होंगे। इन मानकों में उत्पादन के दौरान क्रॉस-कंटेमिनेशन रोकने, हर बैच की सख्त गुणवत्ता जांच (बैच टेस्टिंग) और सुरक्षित उत्पादन प्रणाली शामिल है।

सरकार ने दवा उद्योग को इन मानकों को अपनाने के लिए 2023 के अंत में कहा था, जब अफ्रीका और मध्य एशिया में भारत निर्मित सिरप से 140 से अधिक बच्चों की मौत के मामले सामने आए थे। इस घटना ने भारत की “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में बनी प्रतिष्ठा को गहरा झटका दिया था।

बड़ी दवा कंपनियां जून 2024 तक नए मानकों को लागू कर चुकी हैं, जबकि छोटे निर्माताओं को दिसंबर 2025 तक का समय दिया गया था। उद्योग संगठनों ने सरकार से समयसीमा बढ़ाने की मांग की थी, यह तर्क देते हुए कि नए नियमों का पालन करना आर्थिक रूप से छोटे व्यवसायों के लिए कठिन है।

हालांकि, हाल ही में मध्य भारत में जहरीली सिरप से 24 बच्चों की मौत के बाद सरकार ने किसी भी तरह की छूट देने से इनकार कर दिया। सीडीएससीओ ने अपने नोटिस में कहा है कि 1 जनवरी 2026 से नए नियम सभी निर्माताओं पर लागू होंगे और राज्यों को “शीर्ष प्राथमिकता” के तहत निरीक्षण शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं।

नोटिस में यह भी कहा गया है कि यदि किसी दवा इकाई को इन मानकों का पालन करते हुए नहीं पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

छोटे और मध्यम दवा निर्माताओं के संगठनों ने चेतावनी दी है कि यह कदम कई इकाइयों को बंद करने के लिए मजबूर कर सकता है। एसएमई फार्मा कॉन्फेडरेशन के सचिव जगदीप सिंह ने कहा, “अगर दवाएं इतनी महंगी हो जाएं कि आम लोग उन्हें खरीद ही न सकें, तो गुणवत्ता का क्या फायदा?”

सरकार का कहना है कि यह फैसला दवा उद्योग की विश्वसनीयता बहाल करने और भारतीय उत्पादों में वैश्विक भरोसा मजबूत करने के लिए जरूरी है। अधिकारियों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने से भारत के औषधि क्षेत्र को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा में फायदा मिलेगा।

हालांकि, छोटे निर्माताओं का कहना है कि मशीनरी अपग्रेड, नई प्रयोगशालाएं और गुणवत्ता जांच व्यवस्थाओं में भारी लागत लगेगी, जिससे कई कंपनियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

भारत सरकार का यह नया आदेश दवा उद्योग को एक कठिन लेकिन अहम मोड़ पर ले आया है — जहां एक ओर यह कदम भारत को वैश्विक गुणवत्ता मानकों के करीब लाने की दिशा में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है, वहीं दूसरी ओर, यह छोटे निर्माताओं के लिए अस्तित्व की चुनौती भी बन गया है।

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