Iranian Revolution in Hindi 1979 की ईरानी क्रांति कोई अचानक हुआ हादसा नहीं था, बल्कि सालों से पनप रहा असंतोष था जो धीरे-धीरे एक बड़े जनविस्फोट में बदल गया। एक तरफ शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी थे जो ईरान को पश्चिमी रंग में रंगने की कोशिश कर रहे थे—आधुनिकता, औद्योगीकरण और अमेरिका के साथ मजबूत रिश्ते। लेकिन दूसरी तरफ, आम जनता के एक बड़े हिस्से को ये बदलाव अपने मूल्यों, परंपराओं और पहचान से दूर ले जाते दिख रहे थे। शिक्षा, ज़मीन सुधार और महिलाओं के अधिकार जैसे कदम ज़रूर उठे, लेकिन साथ ही सत्ता का केंद्रीकरण, राजनीतिक विरोध की सख्त निगरानी और SAVAK जैसी खुफिया एजेंसियों के ज़रिये दमन भी बढ़ा।
लोगों की नाराज़गी धीरे-धीरे सड़कों पर उतरने लगी। धार्मिक विद्वानों, खासकर आयतुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में धार्मिक तबका खुलकर सामने आया। खुमैनी को तो निर्वासन में भेजा गया था, लेकिन उनका प्रभाव ईरान में लगातार बढ़ता रहा—कैसेट टेप्स, पत्र और संदेशों के ज़रिए उनका विचार जन-जन तक पहुंचता गया। 1978 तक पूरे देश में हड़तालें, जुलूस और विरोध प्रदर्शन रोज़मर्रा की बात हो गई थी। इन प्रदर्शनों की खास बात ये थी कि इसमें हर विचारधारा के लोग शामिल थे—धार्मिक, वामपंथी, छात्र, कामगार, मध्यम वर्ग, सभी।
आख़िरकार 16 जनवरी 1979 को शाह देश छोड़कर चले गए। ये सिर्फ एक राजा का जाना नहीं था, ये पूरी व्यवस्था का गिरना था। 1 फरवरी को जब खुमैनी तेहरान लौटे तो उनका स्वागत किसी नेता की तरह नहीं, एक आंदोलन के प्रतीक की तरह हुआ। कुछ ही हफ्तों में पूरी सत्ता व्यवस्था उलट दी गई और शाह का राज समाप्त हो गया। फिर अप्रैल में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें भारी बहुमत से देश को इस्लामी गणराज्य घोषित किया गया। खुमैनी को सर्वोच्च नेता बनाया गया और एक नया संविधान लाया गया जिसमें विलायत-ए-फ़क़ीह यानी धार्मिक नेतृत्व की अवधारणा को कानूनी मान्यता दी गई।
इसके बाद देश की दिशा ही बदल गई। शासन प्रणाली धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित हो गई, शिक्षा और कानून में इस्लामी विचारधारा को प्राथमिकता दी गई, और जो शुरुआती सहयोगी थे—जैसे वामपंथी या उदारवादी विचारधारा वाले लोग—उन्हें धीरे-धीरे किनारे कर दिया गया। अमेरिका के साथ संबंध पूरी तरह बिगड़ गए, जो बाद में अमेरिकी दूतावास पर कब्जे और बंधक संकट तक पहुंच गए। लेकिन इन तमाम विरोधों के बीच, ईरान की ये क्रांति दुनिया भर में एक मिसाल बन गई। कई मुस्लिम देशों में इसने धार्मिक जागरूकता और राजनीतिक सक्रियता को प्रेरित किया।
1979 की ईरानी क्रांति को कोई एक लेबल देना मुश्किल है। ये न तो पूरी तरह धार्मिक आंदोलन था, न ही सिर्फ सामाजिक विद्रोह। ये एक ऐसा मोड़ था जहां जनता ने यह तय किया कि उन्हें सत्ता का केंद्र कहां और कैसा चाहिए। आज भी, इस क्रांति की गूंज ईरान की राजनीति, समाज और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में साफ महसूस की जा सकती है। इसे समझना है, तो किसी एक नज़रिए से नहीं—बल्कि पूरे परिप्रेक्ष्य में देखना होगा।
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