पेरिस | अंतरराष्ट्रीय डेस्क
फ्रांस ने आधिकारिक रूप से घोषणा की है कि वह आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा में सितंबर 2025 में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देगा। इसके साथ ही फ्रांस G7 देशों में ऐसा करने वाला पहला देश बन जाएगा। साथ ही वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पहला स्थायी सदस्य होगा जो फिलिस्तीन को मान्यता देगा।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 24 जुलाई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर यह जानकारी साझा की। उन्होंने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को एक पत्र लिखते हुए कहा:
“मध्य पूर्व में शांति की इच्छा फ्रांसीसी जनता की प्राथमिकता है। हमें, फ्रांसीसियों को, इसराइली, फिलिस्तीनी और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर यह साबित करना होगा कि शांति संभव है।”
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क्या होगा इसका असर?
फ्रांस की यह ऐतिहासिक पहल फिलिस्तीन की संप्रभुता और स्वतंत्रता को 1967 के युद्ध से पहले की सीमाओं—वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी और पूर्वी यरूशलम—में मान्यता देती है। इस निर्णय के बाद फ्रांस और फिलिस्तीन के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित होंगे।
इससे पहले 147 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों ने पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे रखी है। फ्रांस अब इस सूची में शामिल हो गया है।
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यूरोपीय संदर्भ और हालिया मान्यताएं
फ्रांस से पहले 10 यूरोपीय संघ (EU) के सदस्य देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं:
• स्वीडन: अक्टूबर 2014 में EU सदस्य रहते हुए सबसे पहले मान्यता देने वाला देश।
• स्पेन और आयरलैंड: 28 मई 2024 को मान्यता दी।
• स्लोवेनिया: 4 जून 2024 को फिलिस्तीन को मान्यता दी और कहा कि दोनों देशों के बीच शैक्षणिक और मानवीय सहयोग मजबूत हैं।
• हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, साइप्रस और बुल्गारिया: इन देशों ने 1988 में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी, EU सदस्य बनने से पहले।
चेकोस्लोवाकिया ने भी 1988 में मान्यता दी थी, लेकिन उसके 1992 में विभाजित होने के बाद चेक गणराज्य ने फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी। 2020 में चेक विदेश मंत्रालय ने कहा कि फिलिस्तीन अंतरराष्ट्रीय कानून की मान्यता की शर्तों को पूरा नहीं करता।
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वैश्विक प्रतिक्रिया
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और EU की विदेश नीति प्रमुख काजा कैलास ने गाज़ा में मानवीय संकट को “असहनीय” और “अक्षम्य” बताया है।
स्वीडन की पूर्व विदेश मंत्री मारगोट वालस्ट्रॉम ने 2014 में कहा था कि:
“हम चाहते हैं कि इसराइल और फिलिस्तीन शांति और सुरक्षा के साथ एक-दूसरे के साथ रहें। हमारी मान्यता का उद्देश्य इसी दिशा में विश्वास और उम्मीद जगाना है।”
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आगे क्या?
फ्रांस की यह घोषणा फिलिस्तीन को मान्यता देने की यूरोपीय मुहिम को और मजबूती देगी और उन देशों पर राजनयिक दबाव बढ़ाएगी जिन्होंने अब तक मान्यता नहीं दी है।
इस कदम को मध्य पूर्व में दो-राष्ट्र समाधान की ओर एक नया संकेत माना जा रहा है। अब सभी की निगाहें सितंबर में होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा पर टिकी हैं, जहां यह ऐलान औपचारिक रूप लेगा।