Apne Iman Ko Taaza Rakhne Ka Tareeqa ~ इस्लाम के पाँच रुक्न है। जिसको पूरा करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है। 1) तोहीद 2) नमाज़ 3) रोज़ा 4) ज़कात 5) हज। ज़कात और हज का तअल्लुक वुसअत से यह है। यानी जिसको इतनी गुंजाइश हो कि इन अहकामात को पूरा कर सके वह पूरा करे।और जो न कर पाये वह. अल्लाह से इसके लिए दुआ करता रहे।
तोहीद । हर मुसलमान पर दिल और ज़बान से कलमा ए तय्यबा यानी “ला इलाहा इल लल्लाह मौहम्मुदुर रसूल अल्लाह” का पढ़ना फर्ज़ है। इसका मतलब है ।अल्लाह एक है , उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है।मौहम्मद ( स०अ०)अल्लाह के रसूल हैं। हज़रत अबुबक्र सिद्दीक़ रज़ि०अ० से रिवायत है रसूल अल्लाह स०अ० ने इरशाद फ़रमाया कि जो शख़्स इस कलमे को कबूल कर ले जिसको मैने अपने चचा (अबु तालिब) पर ( उनके इंतक़ाल के वक्त) पैश किया था और उन्होंने उसे रद्द कर दिया था,वह कलमा उस शख्स के लिए निजात( का ज़रिया) है। [ हवाला:मसनद अहमद]
हज़रत अबु हुरैरा रज़ि०अ० से रिवायत है कि रसूल अल्लाह स०अ० ने इरशाद फ़रमाया :अपने ईमान को ताज़ा करते रहा करो।अर्ज़ किया गया :या रसूल अल्लाह हम अपने ईमान को किस तरह ताज़ा करें ? इरशाद फ़रमाया “ला इलाहा इल लल्लाह” को कसरत से कहते रहा करो। [हवाला:मसनद अहमद,तिबरानी ,तरग़ीब ] ** हज़रत जाबिर रज़ि०अ० से रिवायत है कि मैने रसूल अल्लाह स०अ० को यह इरशाद फ़रमाते हुए सुना: तमाम अज़कार मे सबसे अफ़ज़ल ज़िक्र “ला इलाहा इल लल्लाह” है और तमाम दुआओं मे सबसे अफ़ज़ल दुआ “अल्हम्दुलिल्लाह” है।[ हवाला :तरमिज़ी]
यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि “ला इलाहा इल लल्लाह” सबसे अफ़ज़ल इसलिए है कि सारे दीन का दारोमदार इसी पर है ।इस के बगैर न ईमान सही होता है और न कोई मुसलमान बनता है। “अल्हम्दुलिल्लाह” को अफ़ज़ल दुआ इसलिए फ़रमाया गया है कि करीम की मतलब सवाल ही होता है ।और दुआ अल्लाह से सवाल करने का नाम है। आप को बता दें कि ईमान का शाब्दिक अर्थ किसी के भरोसे पर किसी की बात को दिल के यकीन के साथ मान लेना होता है।जबकि इस्लाम की रुह से रसूल स०अ० द्वारा दिये गये पैगामात को रसूल स०अ० पर भरोसा करके दिल के यक़ीन के साथ मानने का न ईमान है।
सोजन्य: मुंतखिब अहादीस ~ Apne Iman Ko Taaza Rakhne Ka Tareeqa