अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने बुधवार को रूस के ऊर्जा क्षेत्र पर बड़े स्तर पर आर्थिक प्रहार करते हुए दो प्रमुख तेल कंपनियों — रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) — पर कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
अमेरिका का कहना है कि इन प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाना और युद्धग्रस्त यूक्रेन में शांति बहाली की दिशा में उन्हें बातचीत की मेज पर लाना है।
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क्या हैं नए प्रतिबंध?
नई पाबंदियों के तहत:
• अमेरिकी कंपनियों को रोसनेफ्ट और लुकोइल के साथ किसी भी प्रकार के व्यापारिक लेन-देन पर रोक लगाई गई है।
• इन दोनों कंपनियों की अमेरिका में मौजूद संपत्तियों को फ्रीज़ किया जा सकता है।
• प्रतिबंधों की अनदेखी करने पर तीसरे देशों की कंपनियों पर भी सेकेंडरी सैंक्शंस लागू हो सकते हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि “यह प्रतिबंध रूस की युद्ध मशीन को कमजोर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”
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यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका की रणनीति
अमेरिका का मानना है कि रूस की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल निर्यात से आता है। ऐसे में ऊर्जा क्षेत्र को निशाना बनाकर पुतिन सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर किया जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि “जब तक रूस युद्ध जारी रखेगा, तब तक उसे आर्थिक कीमत चुकानी होगी।”
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रूस की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है?
हालांकि रोसनेफ्ट और लुकोइल ने इस पर अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है कि:
• रूस इसे पश्चिमी हस्तक्षेप करार देकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
• वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
• यूरोप सहित उन देशों पर असर पड़ सकता है जो अभी भी रूसी तेल पर निर्भर हैं।
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वैश्विक बाज़ार पर संभावित असर
विशेषज्ञों का कहना है कि:
• इस फैसले से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है।
• ऊर्जा आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता बढ़ सकती है।
• डॉलर मजबूत हो सकता है जबकि रूबल पर दबाव बढ़ने की आशंका है।
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क्या पुतिन बातचीत की मेज पर आएंगे?
अमेरिका को उम्मीद है कि बढ़ते आर्थिक दबाव के चलते रूस को आखिरकार कूटनीतिक समाधान की ओर बढ़ना पड़ेगा।
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि रूस पर केवल आर्थिक प्रतिबंधों के सहारे निर्णायक असर डालना आसान नहीं होगा।