Revolutionary Che Guevara —
14 जून 1928 को अर्जेंटीना के रोसारियो में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसे डॉक्टर बनना था, पर वह इतिहास के पन्नों में क्रांतिकारी बनकर दर्ज हुआ। उसका नाम था एर्नेस्तो ग्वेरा — और आने वाले समय में पूरी दुनिया उसे जानने लगी चे के नाम से।
चे ग्वेरा की ज़िंदगी कोई फिल्मी कहानी नहीं थी, लेकिन उतनी ही जटिल, साहसी और दुखद भी। उसका बचपन किताबों और अस्थमा के साथ गुज़रा, लेकिन उसकी आँखों में जो साफ़ नज़र थी, उसने दुनिया को उस तरह देखने से इनकार कर दिया जैसा शोषक व्यवस्था चाहती थी। मेडिकल की पढ़ाई करते हुए जब उसने लैटिन अमेरिका का सफर किया, तब वो सिर्फ़ भूगोल नहीं देख रहा था — वो देख रहा था वर्गीय असमानता, साम्राज्य की दरारें और पूंजीवाद की दरिंदगी।
उसकी बेचैनी ने उसे डॉक्टर की मेज़ से उठकर क्रांति करने को मजबूर किया — लेकिन ये क्रांति किसी सत्ता की भूख से पैदा नहीं हुई थी, बल्कि उन किसानों की कराह से उपजी थी जिनकी ज़मीनें अमरीकी कंपनियाँ लील रही थीं, और जिनके बच्चों के नाम स्कूल की जगह सिर्फ़ ‘भूख’ में लिखे जाते थे।
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क्यूबा की क्रांति और चे
1955 में चे की मुलाक़ात हुई फिदेल कास्त्रो से — और बस, वो मुलाक़ात इतिहास में बदल गई। चे ने सिर्फ़ विचार नहीं दिया, उसने जूते घिसे, जंगलों में लड़ा, भूखा रहा, और 1959 में जब बतिस्ता की तानाशाही गिरी, तो वो सिर्फ़ एक डॉक्टर नहीं, एक क्रांति का सेनापति बन चुका था।
पर चे सत्ता का आदमी नहीं था। जब कास्त्रो क्यूबा में सरकार चला रहे थे, चे बाहर की दुनिया में क्रांति की लौ जलाना चाहता था। वो अफ्रीका गया, फिर बोलिविया — जहाँ 1967 में उसे पकड़कर उसकी हत्या कर दी गई।
उसे गोली मारने वाले सैनिकों ने भी माना कि उसका चेहरा मौत के बाद भी डराता नहीं, प्रेरित करता था।
आज जब दुनिया फिर से सांप्रदायिकता, पूंजीवाद, युद्ध और अमीरों की सत्ता के इर्द-गिर्द घूम रही है — तब चे की याद सिर्फ़ एक पोस्टर नहीं, एक पुकार बन जानी चाहिए।
क्योंकि चे आज भी उस किसान की उम्मीद है जिसकी ज़मीन छीनी जा रही है।
वह उस मज़दूर की मुँहबन्द चीख है जो फैक्ट्री में मशीन बनकर जी रहा है।
और वह हर युवा के दिल की धड़कन है, जो इस व्यवस्था से सवाल पूछना चाहता है लेकिन उसे ‘विलेन’ कहकर चुप कराया जाता है।
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Revolutionary Che Guevara