आयरलैंड में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी स्वतंत्र उम्मीदवार कैथरीन कॉनॉली ने जबरदस्त जीत दर्ज करते हुए देश की 10वीं राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया है। 68 वर्षीय कॉनॉली को प्रथम-पसंद (फर्स्ट प्रेफरेंस) मतदान में 63% वोट मिले, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी सेंटर-राइट पार्टी फाइन गेल की उम्मीदवार हेदर हम्फ्रीज़ को केवल 29% वोट हासिल हुए। तीसरे उम्मीदवार जिम गैविन, जिन्होंने नाम वापसी के बावजूद बैलेट से अपना नाम नहीं हटाया था, को 7% वोट मिले।
गॉलवे से ताल्लुक रखने वाली कॉनॉली आयरिश भाषा की प्रवाहपूर्ण वक्ता हैं और पूर्व बैरिस्टर रह चुकी हैं। वह 2016 से सांसद हैं और अब देश की राष्ट्रपति बनने वाली तीसरी महिला होंगी। जीत के बाद डबलिन कैसल में समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वह विविधता, शांति और समावेशिता की आवाज़ बनेंगी और आयरलैंड की सैन्य तटस्थता की नीति को आगे बढ़ाएंगी। उन्होंने कहा, “मैं आप सभी की समावेशी राष्ट्रपति बनूंगी और इसे अपने जीवन का बड़ा सम्मान मानती हूं।”
कॉनॉली को सिन फेन, लेबर पार्टी और सोशल डेमोक्रेट्स जैसे वामपंथी दलों का समर्थन मिला। वह गाजा युद्ध में इज़राइल की आलोचना और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद यूरोपियन यूनियन के बढ़ते सैन्य रुझान की मुखर आलोचक रही हैं। हालांकि उनके इन रुखों को लेकर कुछ आलोचकों का कहना है कि यह आयरलैंड के पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को असहज कर सकता है।
चुनाव में लगभग 46% मतदान हुआ। इस दौरान 2.14 लाख बैलेट अमान्य पाए गए, जो 2018 के चुनावों की तुलना में दस गुना अधिक हैं। चुनाव आयोग ने इसे मतदाताओं की असंतुष्टि का संकेत बताते हुए इस पर गहराई से विचार की आवश्यकता जताई है। उप प्रधानमंत्री सायमन हैरिस ने कहा कि यह बढ़ती राजनीतिक निराशा की ओर इशारा करता है और भविष्य में राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन प्रक्रिया के मानकों में बदलाव संभव है।
कॉनॉली मौजूदा राष्ट्रपति माइकल डी. हिगिन्स की जगह लेंगी, जिन्होंने 2011 से दो कार्यकाल पूरे किए हैं। आयरलैंड में राष्ट्रपति मुख्यतः औपचारिक पद होता है, जिसकी भूमिका देश का वैश्विक प्रतिनिधित्व करना, संविधान की रक्षा सुनिश्चित करना और राजकीय समारोहों की मेजबानी करना होती है।
इस जीत को आयरलैंड की राजनीति में वाम गठजोड़ के लिए एक बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। लेबर पार्टी की नेता इवाना बाचिक ने कहा कि इस नतीजे से स्पष्ट है कि “देश में बदलाव की भूख मौजूद है और भविष्य में केंद्र-वामपंथी सरकार की संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं।”