इतिहास के विद्यार्थियों को शायद इसके बारे में पता हो, दिसंबर 1970 में जब पाकिस्तान में पहली बार आम चुनाव हुए तो बहुत सी बातें पहले से ही चल रही थी।
बहरहाल, 300 सीटों के हाउस में से 160 सीटें ईस्ट पाकिस्तान में थीं और 140 वेस्ट पाकिस्तान में। वेस्ट पाकिस्तान के नेताओं को भरोसा था कि शेख़ मुजीबुर रहमान की पार्टी वेस्ट पाकिस्तान में अपना खाता भी नहीं खोल पाएगी और ईस्ट पाकिस्तान में भी उसका परफॉरमेंस बहुत अच्छा नहीं रहेगा। ज़मीनी हक़ीक़त से नावाक़िफ़ जनरल याह्या ख़ान ने चुनाव कराए और पूरी ईमानदारी से कराए लेकिन चुनाव में जब नतीजा आया तो उनके लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई।
मुजीबुर रहमान की आवामी लीग ने ईस्ट पाकिस्तान की सभी 160 सीटें जीत लीं लेकिन वेस्ट पाकिस्तान में उन्हें कोई सीट न मिली। फिर भी बहुमत तो उन्हें मिल ही गया था परंतु वेस्ट पाकिस्तान के अधिकतर नेता मुजीबुर रहमान को भारत का एजेंट मानते थे और सत्ता उन्हें न सौंपी जाए इसके लिए याह्या ख़ान पर दबाव बनाया जा रहा था। ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टू की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने ज़ोरदार विरोध किया।
ये सब चल ही रहा था कि ईस्ट पाकिस्तान की ढाका यूनिवर्सिटी में राजनीतिक बहस तेज़ हो गई। बंगाली को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे। इस मुद्दे पर 1950 के बाद से ही बहस तेज़ हो गई थी और लगातार ये मुद्दा ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को आकर्षित करता था। चिट्टागोंग और ढाका का भारत के आज़ादी के आंदोलन में अहम रोल रहा था और बंगाली राष्ट्रवाद के लिए कलकत्ता, ढाका और चिट्टागोंग से आवाज़ें अंग्रेज़ों के समय से ही उठी थीं।
ढाका यूनिवर्सिटी में लड़के-लड़कियाँ ब्रेक के समय ‘मधुर कैंटीन’ में जाते थे, जहाँ बंगाली राष्ट्रवाद पर बौद्धिक चर्चा होती थी। हालत ये थी कि वेस्ट पाकिस्तान में बैठी सरकार को ‘मधुर कैंटीन’ से उलझन होने लगी थी। वेस्ट पाकिस्तान का ईस्ट से भेदभाव लगातार ज़ाहिर था। नवंबर, 1970 में जब ‘भोला साइक्लोन’ आया तो ‘मधुर कैंटीन’ से ही ये आवाज़ उठी कि पाकिस्तानी सरकार ने ज़रूरी मदद नहीं पहुँचाई। इस साइक्लोन में 5 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए, वेस्ट पाकिस्तान में बैठी सरकार इस ग़ुस्से को नहीं समझ पा रही थी।
ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पहले से ही ये माँग की हुई थी कि पाकिस्तान को इस्लामिक नहीं बल्कि सेक्युलर देश माना जाए। असल में तब के पाकिस्तान में अधिकतर हिन्दू आबादी ईस्ट पाकिस्तान में थी और यहाँ वे राजनीति में भी सक्रिय थे। ‘बंगाली राष्ट्रवाद’ की आत्मा में धर्म था ही नहीं, बात ज़बान और उससे भी ज़्यादा कल्चर की थी। यही वजह थी कि ‘बिहारी’ लोगों को ईस्ट पाकिस्तान में वो सम्मान नहीं मिलता था और मूलतः भारत के बिहार राज्य के रहे ये ‘बिहारी’ वेस्ट पाकिस्तान की पार्टियों को ही पसंद करते थे। ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को लगता था कि ये उर्दू बोलने वाले लोग इस्लामाबाद से भेजे गए हैं और सब नौकरियाँ इनको ही मिल जाती है क्यूँकि रेलवे जैसी सेवाओं में उर्दू ज़रूरी ज़बान थी।
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बहरहाल, चुनाव के बाद सरकार को लेकर पाकिस्तान में राजनीतिक संकट आ चुका था। जनरल याह्या ख़ान ने 1 मार्च, 1971 को नेशनल असेंबली बुलाई थी लेकिन वो टाल दी गई। इसकी ख़बर जैसे ही ईस्ट पाकिस्तान पहुँची, ‘बिहारी’ लोगों पर ज़बरदस्त हिंसा हुई। बड़ी संख्या में ‘बिहारी’ मारे गए क्यूँकि ऐसा माना जाता था कि वो वेस्ट पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों को पसन्द करते हैं। 7 मार्च को बंगबंधु मुजीबुर्रहमान ने ढाका में ऐतिहासिक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा,”इस बार संघर्ष हमारी आज़ादी के लिए है” और ‘नॉन-कोऑपरेशन’ आंदोलन शुरू हो गया।
हालाँकि उस वक़्त कुछ लोगों ने माना कि ये महज़ राजनीतिक पैंतरा है और मुजीबुर्रहमान चाहते थे कि बातचीत से मुद्दा सुलझ जाए। इस बीच पाकिस्तान की सेना में शामिल बंगाली फ़ौजी अचानक ग़ायब हो जा रहे थे, सेना ने बंगाली ईस्ट पाकिस्तानी फ़ौजियों पर कार्यवाई भी करना शुरू कर दिया था। वहीं मुजीब 25 मार्च की शाम तक यही सोच रहे थे कि मामला बातचीत से हल हो जाए।
‘मधुर कैंटीन’ में बंगाली राष्ट्रवाद की बहस तेज़ होती जा रही थी। 25 मार्च की रात को ही वेस्ट पाकिस्तान से आयी फ़ौज ने ईस्ट पाकिस्तान पर हमला कर दिया, इसे ‘आपरेशन सर्चलाइट’ कहा गया। 26 मार्च को मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान से आज़ादी की घोषणा की और बांग्लादेश नाम का देश बना।
‘आपरेशन सर्च लाइट’ में 26 मार्च को फ़ौज ने ढाका यूनिवर्सिटी पर हमला किया। कई स्टूडेंट्स मारे गए, ‘मधुर कैंटीन’ के मालिक मधुसूदन डे और उनके परिवार की भी हत्या हो गई। एक समय लगा कि सब ख़त्म हो गया।
ढाका यूनिवर्सिटी पूरी तरह से तहस नहस हो गई। ढाका और चिट्टागोंग जैसे शहर बुरी तरह झुलस गए लेकिन प्रतिरोध ख़त्म नहीं हुआ, बंगाली जनता ने ‘मुक्ति बाहिनी’ के नेतृत्व में लड़ाई जारी रक्खी…
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