अस्सलाम ओ अलैकुम दोस्तों, हम एक बार फिर हाज़िर हैं दीन की बातें लेकर. इससे पहले कि हम आज की पोस्ट की बात पर आएँ दोस्तों आप सभी से गुज़ारिश है कि सर्दियों के इस मौसम में किसी परेशान हाल को देखें तो उसकी मदद करें. आप सभी से हम ये बात कहना चाहते हैं कि अगर आपके पास एक्स्ट्रा कपड़े हों जो इस मौसम के हिसाब से मुफ़ीद हैं तो उन्हें किसी ज़रूरतमंद को दे दें. इसके अलावा सर्दी के मौसम में अपने घर के बच्चों, बूढों का ख़याल करें और अपना भी ध्यान रक्खें.आइये अब दीन की बातें करते हैं..
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अ० कहते हैं कि हुज़ूरे अक़दस स० अ० के विसाल के बाद मैने एक अंसारी से कहा कि हुज़ूर स० अ० का तो विसाल हो गया है लेकिन अभी तक सहाबा रज़ि अ० की बड़ी जमाअत मोजूद है ।आओ इनसे पूछ कर मसाइल याद करें।उन अंसारी ने कहा कि क्या इन सहाबा रज़ि अ० की जमात के होते हुए भी लोग तुमसे मसाइल पूछने आएंगे। सहाबा रज़ि अ० की बहुत बड़ी जमात मौजूद है।गरज़ उन साहब ने तो हिम्मत की नहीं।मगर मै मसाइल के पीछे पड़ गया ।और जिन साहब के बारे मे भी मुझे मालूम पड़ता कि फ़लाँ हदीस उन्होंने हुज़ूरे अक़दस स० अ० से सुनी है उन के पास जाता और तहक़ीक़ करता।
मझे बहुत बड़ा ज़ख़ीरा अन्सार से मिला। बाज़ लोगों के पास जाता मालूम होता सो रहे हैं, तो अपनी चादर वहीं चोखट पर रखता और इंतज़ार मे बैठ जाता। गौ हवा से मूंह और बदन पर मिट्टी भी पड़ती रहती मगर मै वहीं बैठा रहता। जब वह उठते तो जिस बात को मालूम करना होता दरियाफ्त करता। वह हज़रात कहते भी कि तुमने हुज़ूरे अक़दस स० अ० के चचाज़ाद भाई होते हुए भी यह तक़लीफ़ क्यों उठायी, मुझे बुला लेते। मगर मैं कहता कि मै इल्म हासिल करने वाला हूँ इसलिए मै हाज़िर होने का ज़्यादा मुस्तहिक़ हूँ।
बाज़ पूछते कि तुम कब से बैठे हो ,मै कहता कि देर से। वह अर्ज़ करते कि तुमनें बुरा किया ,हमकों बुला लेते।मै कहता कि मेरा दिल न चाहा कि आप मेरी वजह से अपनी ज़रूरियात से फ़ारिग़ होने से पहले मेरे पास आते।हत्ता कि एक वक्त वह नौबत भी आयी कि ल़ोग इल्म हासिल करने के लिए मेरे पास जमा होने लगे। तब उन अंसारी साहब भी क़ल्क़ हुआ। कहने लगे कि यह लड़का हमसे ज़्यादा होशियार निकला। यह था अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अ० का जज़्बा जिसने उन्हें बहरुल इल्म का लक़ब दिलवाया। (फज़ाइले आमाल)