हज़रत हूद अ० स० एक बहुत ताक़तवर कौम की और नबी बना कर भेजे गये थे। इस कौम के बारे मे इबने कस़ीर ने लिखा है कि इनका बच्चा तीन सौ बरस में जा के बालिग होता था।उनके क़द ऐसे होते थे कि कोई तीस हाथ का तो कोई चालीस हाथ का होता था। इस कौम के लोगों की उम्रें भी बहुत लंबी होती थी। रिवायतों मे आता है कि इनकी उम्रे हज़ार हज़ार बरस की होती थीं। हज़रत हूद अ० स० ने अपनी कौम मे दावत का काम शुरू किया और कलमे की दावत पेश की। हज़रत हूद अ० स० ने कहा “ ला इ लाहा इल लल्लाह” को सीख लो नहीं तो बर्बाद हो जाओगे।
उनकी कौम के लोग कहने लगे, हमसे ज़्यादा ताक़तवर कौन हो सकता है ?इस तरह हूद अ० स० दावत देते रहे क्लेकिन लोगों ने इस्लाह मंज़ूर न की।उनके आमाल बिगड़ते रहे।तब अल्लाह तआला ने उनको अज़ाब का मज़ा चखाने का इरादा फ़रमाया। पहले उन पर क़हत भेजा। तब यह कौम हर चीज़ खा गयी।कुत्ते ,बिल्लियां ,चूहे, हर चीज़ को अपनी ग़िज़ा बना लिया।दरखतों के पत्ते भी खा गये । जब खाने को कुछ न बचा तो हज़रत हूद अ० स० के पास आये, कहने लगे कि क्या करें, आप ही कोई रास्ता बतायें।हूद अ०स० ने तौबा करने और अल्लाह का हुक्म मानने का हुक्म किया। लेकिन उन लोगों ने नहीं माना। आपस मे मशवरा करके एक वफ़द बयतुल्लाह भेजा कि वहाँ जा कर दुआ करे।
अल्लाह तआला ने तीन बादल उठाये।एक काला, एक सफेद, एक सुर्ख़।अल्लाह ने फ़रमाया इनमें से एक पसंद करो। वफ़्द ने मशवरा किया न सफेद मे पानी होता है न सुर्ख मे।कहा यह काला बादल हमें चाहिए ।यह हम पर बारिश बरसायेगा।अल्लाह ने फ़रमाया : ठीक है।कहा ,जाओ, आ रहा है तुम्हारे पीछे पीछे। अब जो यह वतन पहुंचे और बादल आया,इसमें से हवा निकली। अल्लाह ने हवा के फ़रिश्ते से कहा इस क़ौम को हलाक कर दो।जब हवा चली वो फ़रिश्ते के हाथों से बे क़ाबू हो गयी।अल्लाह का अम्र उस हवा को चला रहा था।हवा आयी, चली, भंवर मे घूमी।हवा ने उनको उठाकर आपस मे टकराया।उनके सर टकराये। खोपड़ियां फट गयीं। यहाँ तक कि पूरी कौम नेस्तनाबूद हो गयी कि कोई नाम लेने वाला न बचा। (सोजन्य से: मौलाना तारिक़ जमील के बयान)