नई दिल्ली/काठमांडू, भारत दुनिया डेस्क।
नेपाल और भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल में लगातार हो रही भारी बारिश ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है। समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, अब तक 60 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग लापता हैं। नदियों के उफान, पुलों के टूटने और सड़कों के धंसने से कई इलाके देश के बाकी हिस्सों से कट गए हैं।
दार्जिलिंग और कलिम्पोंग का संपर्क टूटा
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों में बाढ़ और भूस्खलन से सबसे अधिक नुकसान हुआ है। तीस्ता नदी का जलस्तर बढ़ने से सिक्किम और कलिम्पोंग के बीच संपर्क पूरी तरह टूट गया है।
राष्ट्रीय राजमार्ग-10 (NH-10), जो सिलिगुड़ी को गंगटोक से जोड़ता है, कई हिस्सों में बह गया है और फिलहाल बंद है।
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रभावित इलाकों में फंसे पर्यटकों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
उन्होंने कहा, “सरकार सभी लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हादसों में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “सरकार प्रभावित इलाकों की स्थिति पर करीबी नजर रख रही है और हरसंभव मदद सुनिश्चित की जा रही है।”
नेपाल में स्थिति भयावह, 40 से ज्यादा की मौत
नेपाल में 3 अक्टूबर से लगातार बारिश हो रही है। मौसम विभाग के अनुसार, देश की आठ प्रमुख नदियां, जिनमें कोसी और बागमती शामिल हैं, खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की प्रवक्ता शांति महात के मुताबिक, बारिश से जुड़ी घटनाओं में 43 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग लापता हैं।
सबसे ज़्यादा प्रभावित कोसी प्रांत का इलाम जिला है, जहां भूस्खलन से कम-से-कम 37 लोगों की जान गई।
नेपाल की प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने 11 अक्टूबर तक राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की है और नागरिकों से गैर-ज़रूरी यात्रा टालने की अपील की है।
हिमालय क्षेत्र में आपदा का खतरा बढ़ा
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी इलाका जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक संवेदनशील हो गया है।
अंधाधुंध निर्माण, जनसंख्या दबाव और जंगलों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ा है।
मॉनसून के दौरान कम अवधि में होने वाली अत्यधिक वर्षा से नदियों का बहाव तेज़ हो जाता है, जिससे पुल, सड़कें और खेती योग्य भूमि बह जाती हैं।
2025 के मानसून में भी हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भारी बारिश से व्यापक तबाही हुई थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि टिकाऊ विकास नीतियों को जल्द लागू नहीं किया गया, तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और विनाशकारी प्रभाव आने वाले वर्षों में और बढ़ सकते हैं।