छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)/जयपुर (राजस्थान): बीते एक महीने में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में नौ और राजस्थान में दो बच्चों की मौत ने बाल स्वास्थ्य व्यवस्था और दवाओं की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। परिजनों का आरोप है कि बच्चों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कफ़ सिरप पिलाए जाने के बाद उनकी हालत बिगड़ी और किडनी फेल हो गई।
मध्य प्रदेश सरकार ने छिंदवाड़ा में हुई मौतों के बाद तमिलनाडु की श्रीसन फ़ार्मास्यूटिकल कंपनी द्वारा बनाई जा रही कोल्ड्रिफ़ कफ़ सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट ने इसकी जांच रिपोर्ट में सिरप के एक बैच में 48.6 प्रतिशत डायथिलीन ग्लाइकॉल पाए जाने की पुष्टि की, जिसे ज़हरीला और घातक माना जाता है।
परिजनों का दर्द और सवाल
छिंदवाड़ा निवासी यासीन ख़ान ने बताया कि उनके चार साल के बेटे उसैद की मौत 13 सितंबर को किडनी फेल होने से हुई। उन्होंने कहा, “हमने लाखों रुपये खर्च किए, ऑटो तक बेच दिया, लेकिन बेटे को नहीं बचा पाए। अब यही चाहते हैं कि किसी और पिता को यह दर्द न झेलना पड़े।”
इसी तरह परासिया ब्लॉक के कई परिवार अपने मासूम बच्चों को खोने के बाद इंसाफ़ की मांग कर रहे हैं।
जांच और विरोधाभास
राज्य के ड्रग कंट्रोलर का कहना है कि उनके पास से भेजे गए कुछ नमूनों में जहरीले रसायन नहीं मिले हैं और जांच अभी जारी है। लेकिन तमिलनाडु की रिपोर्ट इसके विपरीत है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
राजस्थान के भरतपुर और झुंझुनू ज़िले में भी बच्चों की मौत के बाद परिजनों ने कफ़ सिरप पर संदेह जताया है, हालांकि राजस्थान सरकार का दावा है कि उनकी जांच में सिरप में कोई हानिकारक तत्व नहीं मिला।
विशेषज्ञों की राय
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह सिर्फ दवा की गुणवत्ता का मामला नहीं, बल्कि दवाओं में मिलावट और टॉक्सिक रसायनों के इस्तेमाल का गंभीर उदाहरण है। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे रसायन बच्चों के लिए सीधे तौर पर किडनी और ब्रेन को प्रभावित करते हैं, जिससे मौत भी हो सकती है।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल
मध्य प्रदेश की शिशु मृत्यु दर पहले ही राष्ट्रीय औसत से अधिक है। ऐसे में कफ़ सिरप से हुई मौतों ने राज्य की दवा नियामक प्रणाली, गुणवत्ता नियंत्रण और स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरी चिंता खड़ी कर दी है।