चार दशक की तानाशाही और एक दशक लंबे गृहयुद्ध के बाद सीरिया अपना पहला चुनाव करा रहा है। लेकिन यह प्रक्रिया लोकतंत्र से अधिक जटिल और विवादास्पद दिख रही है। देश में जारी अस्थिरता, विस्थापन और कमजोर कानूनी ढांचे के कारण यह “अप्रत्यक्ष चुनाव” हो रहा है, जिसमें आम जनता मतदान नहीं करेगी, बल्कि विभिन्न समितियां निर्वाचक मंडल के ज़रिए संसद के 121 सदस्य चुनेंगी।

सीरिया की अंतरिम सरकार के अनुसार, पारंपरिक चुनाव कराना वर्तमान परिस्थितियों में संभव नहीं है। सर्वोच्च समिति द्वारा 62 निर्वाचन क्षेत्रों में उप-समितियां गठित की गई हैं, जो शिक्षित, प्रभावशाली और विविध पृष्ठभूमि वाले लोगों को निर्वाचक मंडल में शामिल करेंगी। इन मंडलों के लगभग 6,000–7,000 सदस्य मिलकर पीपल्स असेंबली का चुनाव करेंगे, जिसमें 20 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

हालांकि कुछ क्षेत्रों — जैसे स्वेदा, रक्का और हसाकेह — में सुरक्षा कारणों से चुनाव स्थगित किए गए हैं, जहां कुर्द और द्रूज समुदायों का प्रभाव है। इसके अलावा 70 सांसदों की नियुक्ति सीधे अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा द्वारा की जाएगी, जिससे सत्ता पर उनके नियंत्रण को लेकर चिंता बढ़ी है।

विश्लेषकों के अनुसार, यह प्रक्रिया कागज पर लोकतांत्रिक सुधारों जैसी दिखती है, लेकिन वास्तविकता में राष्ट्रपति को अत्यधिक शक्तियां देती है। कई नागरिक संगठनों और अल्पसंख्यक समूहों ने इस चुनाव को “वैधता का दिखावा” बताया है। नई संसद से पुराने कानूनों की समीक्षा, संविधान का मसौदा और आने वाले वर्षों में प्रत्यक्ष चुनावों की तैयारी की अपेक्षा की जा रही है।

सीरिया के इस ऐतिहासिक लेकिन विवादित चुनाव ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं — क्या यह वाकई लोकतंत्र की ओर कदम है, या तानाशाही की नई परत?