Saad Hafeez ~ अचार संहिता लगने से पहले ही प्रत्याशी फाइनल करना एक अच्छा फैसला हो सकता है. अब अगर इन प्रत्याशियों मे आगे जाके कोई बदलाव न हुए तो इन सबके पास तैयारी करने का एक अच्छा खासा समय मिल जायेगा. जिससे कई सीट जीत मे या पिछले चुनाव के मुकाबले मार्जिन कम करने का एक अच्छा मौका है.
जैसे लखनऊ लोकसभा मे पिछली बार सपा+बसपा और कांग्रेस अलग लड़े थे, जिसकी वजह से भाजपा प्रत्याशी आराम से 3,47,000 वोटों से जीत दर्ज ले गए थे सपा को 2,85,000 और कांग्रेस को 1,80,000 वोट मिले थे.
बसपा का इस शहरी सीट पर वो प्रभाव न रहा है अब, 2014 मे नकुल दुबे भी 64000 वोट पाए थे तो इस बार अलग लड़के भी बसपा शायद 30000-35000 तक ही पा सके.
इस बार रविदास मेहरोत्रा (Ravidas Mehrotra) को टिकेट देके वो बाहरी का टैग तो खत्म हुआ पार्टी से , मौजूदा विधायक के साथ साथ लखनऊ मे हर वर्ग मे अच्छी पैठ है रविदास मेहरोत्रा की और अगर 2019 के नतीजों को जोड़ के देखा जाए बाहरी होने के बावजूद 2,85,000 वोट पाने वाली पूनम सिन्हा और 1,80,000 वोट पाने वाले आचार्य जी, दोनों को वोट को जोड़ा जाए तो मार्जिन 3,47000 se आराम से 1,50,000 तक आ जाता है. फिर कह रहा हूँ कि बसपा का यहाँ अब वो प्रभाव न रहा है.
तो अगर सही मेहनत और हर वर्ग मे जाके मेहनत कि जाए तो शायद ये मार्जिन 1,00,000 के अंदर भी आ सकता है. जिसे बीजेपी के लिए मुफीद कही जाने वाली सीट पर भी आगे हराया जा सकता है.
– साद हफ़ीज़ (Saad Hafeez)
लखनऊ के रहने वाले साद हफ़ीज़ राजनीतिक जानकार हैं और चुनावी राजनीति पर तार्किक टिपण्णी करने के लिए जाने जाते हैं.
*यहाँ प्रस्तुत किए गए विचार निजी हैं.