इस्तांबुल: तुर्की के शहर इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हुई बहुप्रतीक्षित शांति वार्ता बिना किसी ठोस नतीजे के समाप्त हो गई। दोनों पक्षों ने वार्ता की विफलता के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया है। यह बातचीत सीमा पर बढ़ते तनाव को कम करने और संघर्षविराम को बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी। पिछले कुछ हफ्तों में दोनों देशों के बीच झड़पों में तेजी आई है, जिनमें कई सैनिकों और नागरिकों की मौत हुई। यह हिंसा 9 अक्टूबर को काबुल में हुए उन विस्फोटों के बाद शुरू हुई थी, जिनके लिए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। तालिबान का कहना है कि ये हमले पाकिस्तान के ड्रोन हमलों का नतीजा थे और उन्होंने चेतावनी दी थी कि वे इसका जवाब देंगे।
कतर की मध्यस्थता में 19 अक्टूबर को जो संघर्षविराम हुआ था, वह अभी तक कायम है, लेकिन इस्तांबुल में हुई यह बैठक उस समझौते को और स्थायी बनाने में विफल रही। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा कि पाकिस्तान के “गैर-जिम्मेदार और असहयोगी रवैये” के कारण वार्ता असफल रही। उन्होंने कहा कि इस्लामिक अमीरात की सद्भावनाओं और मध्यस्थों के प्रयासों के बावजूद कोई परिणाम नहीं निकला। मुजाहिद ने यह भी दोहराया कि अफगानिस्तान किसी भी स्थिति में अपने क्षेत्र का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं होने देगा और अपनी संप्रभुता या सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
तुर्की और कतर की मध्यस्थता में हुई यह दो दिवसीय वार्ता 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच सबसे अहम कूटनीतिक कोशिशों में से एक मानी जा रही थी। हालांकि, शुक्रवार रात तक चली बातचीत किसी समझौते तक नहीं पहुंच सकी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने जियो न्यूज को बताया कि “बातचीत खत्म हो चुकी है, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल लौट रहा है और किसी अगली बैठक की कोई योजना नहीं है।” उन्होंने कहा कि संघर्षविराम तब तक जारी रहेगा जब तक अफगान पक्ष इसका उल्लंघन नहीं करता।
वार्ता की विफलता के तुरंत बाद सीमा पर गोलाबारी हुई, जिसमें चार अफगान नागरिकों की मौत हुई और पांच लोग घायल हुए। पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान तालिबान शासन अपने क्षेत्र में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को पनाह दे रहा है, जो 2021 के बाद से पाकिस्तान में बढ़ते हमलों के लिए जिम्मेदार है। काबुल इन आरोपों को खारिज करता है और कहता है कि वह अपनी जमीन से किसी देश के खिलाफ गतिविधि की अनुमति नहीं देता। इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की सेना ने दावा किया था कि उसने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी तालिबान के ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिनमें कई आतंकवादी मारे गए। अफगान अधिकारियों ने इस दावे को झूठा बताया और कहा कि हमलों में नागरिकों की मौत हुई है। इसके जवाब में अफगान बलों ने पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर हमला किया, जिसमें 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। पाकिस्तान ने 23 सैनिकों के हताहत होने की पुष्टि की है।
वार्ता नाकाम होने के बाद पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के साथ अपनी सभी सीमा चौकियां बंद रखी हैं। केवल तोरखाम चौकी को आंशिक रूप से खोला गया है ताकि फंसे हुए अफगान नागरिक वापस लौट सकें। 12 अक्टूबर से लागू इस बंदी ने दोनों देशों के बीच व्यापार और आवाजाही को बुरी तरह प्रभावित किया है। हजारों लोग सीमा पर फंसे हैं और सैकड़ों ट्रक दोनों ओर रुके हुए हैं। यह मार्ग दक्षिण और मध्य एशिया को जोड़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक रास्तों में से एक माना जाता है।
इस बीच पाकिस्तान ने अवैध विदेशी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है, जिनमें ज्यादातर अफगान नागरिक शामिल हैं। 2023 से अब तक दस लाख से अधिक अफगानों को वापस भेजा जा चुका है। इसी दौरान पाकिस्तान में आतंकी हमलों में भी तेजी आई है, जिनमें से कई की जिम्मेदारी टीटीपी ने ली है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र इस संगठन को आतंकवादी घोषित कर चुके हैं।
हालांकि तालिबान शासन और टीटीपी औपचारिक रूप से अलग संगठन हैं, लेकिन दोनों के बीच वैचारिक और ऐतिहासिक संबंध गहरे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद टीटीपी को नई ताकत मिली है। इस्तांबुल में वार्ता की विफलता से संकेत मिलता है कि फिलहाल दक्षिण एशिया में स्थायी शांति की संभावना दूर है। सीमा पर जारी तनाव और कूटनीतिक संवाद के टूटने से न केवल पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंध और जटिल होंगे, बल्कि इसका असर पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर भी पड़ सकता है।