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अस्सलामोअलैकुमक नाज़रीन भाइयों और बहनों हम अपने बच्चों को कैसे तालीम दे, अल्लाह ताला ने इंसान को ऐसा बनाया है कि कोई भी काम करने से पहले उसे सीखना पड़ेगा बगैर सीखे वह कुछ भी नहीं कर सकता।ड्राइवरी आती नहीं गाड़ी नहीं चला सकता छोटे से छोटा काम उसे सीखना पड़ता है अल्लाह ताला ने 29 पारो के बाद तीसवे पारे की आयत इकरा बिस्मी रब्बी सबसे पहले उतारी सीखो और पढ़ो पहले सीखोगे तभी तो करोगे। सबसे पहले सूरःइकरा बिस्मी रब्बी में सबसे पहले अल्लाह ताला ने कहा है इंसान की सबसे पहली जरूरत इल्म है

पहले इल्म हासिल करो फिर आगे बढ़ो।हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम इस आयत को लेकर आए उन्होंने कहा कि मैं जाहिलयत को खत्म करने के लिए आया हूं जाहिलयत और इस्लाम एक दूसरे के उल्टे हैं इस्लाम आयगा जाहिलियत जायगी।जाहिलियत आयगी तो इस्लाम जायगा जैसे रात और दिन 1 दूसरे के उल्टे हैं वैसे ही इस्लाम और जाहिलियत है अल्लाह के नबी ने 14 सौ साल पहले कानून बनाया हर मुसलमान बच्चा चाहे वह औरत हो या मर्द हो उसको इल्म का हासिल करना जरूरी है जैसे अल्लाह ताला ने नमाज को और रोजे को फर्क फरमाया है

वैसे इल्म के बारे में कहा यह फर्ज से भी ज्यादा जरूरी है इल्म हासिल करो इल्म के पढ़ने और हासिल करने के इतने फायदे बयान किए गए। अल्लाह के नबी को जाहिल यत को कदमों तले रौंदने के लिए भेजा गया लेकिन कितने अफसोस की बात है कि हम मुसलमान इस्लाम पर अमल नही करते हैं और हर फील्ड में हर जगह मुसलमान पीछे हो गया है मुसलमान पढ़ना लिखना नहीं चाहता ना ही वह अपने दीन पर कायम रहता है आदिवासी भी आज मुसलमान से ज्यादा तालीम हासिल करते हैं। इस्लाम की शुरुआत इल्म से हुई और आज मुसलमान इतना जाहिल है कि वह किसी भी फील्ड में आगे नहीं है इल्म जाहिलयत को खत्म करने के लिए आया इस्लाम को जानने और पहचानने के लिए बना और मुसलमानों के पढ़ने का तालिम क रेशियो इतना कम है कि आज हर मुसलमान को कोशिश करना चाहिए कि वह अपने परिवार में तालीम को पहले रखें लोग कहते हैं कि मुसलमान गरीब है स्कूल नहीं खोल सकते, कॉलेज नहीं खोल सकते हैं अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते लेकिन यह बिल्कुल गलत है बात अहमियत देने की है


मुसलमान आज पढ़ाई को अहमियत नहीं देते वह कहते हैं कि हम अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कहां से इतने पैसे देंगे ना वह फीस दे सकते हैं ना वह अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं जब वह उन बच्चों की शादी करता है तो उनके पास कहां से पैसे आ जाते हैं और आज जो बच्चों की शादी का खर्च है वह तालीमी खर्चे से पढ़ाई लिखाई के खर्चे से 100 गुना ज्यादा है तो वह मां-बाप कहां से करते हैं तालीम पर जो खर्च करना चाहिए उससे सौ गुना ज्यादा शादी का खर्च करते हैं जिसे अहमियत देना चाहिए उसे अहमियत नहीं देता और जिसे अहमियत नहीं देना चाहिए उसे अहमियत देते हैं अल्लाह ताला ने इकरा से शुरू किया आपको मालूम होगा की जो दीन आया उसमें सबसे पहले इल्म से शुरुआत हुई


पहले नंबर पर इल्म होगा जो अपनी नफसियात को पहले नंबर पर रखता है वह जिंदगी में कामयाब होता है। गांव में बहुत बड़े-बड़े जमीदार थे लेकिन वहां कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था 6 गांव में 1 भी ग्रेजुएट नहीं था 26000 में से 1 भी ग्रेजुएट नही। दीन इस्लाम मे तो हम पीछे ही है और दुनियावी पढ़ाई में भी हम पीछे है आज यही वजह है मुसलमान इतने पीछे है।3करोड़ मुसलमान हुक्का पीते है बीड़ी पीते हैं अमल करते है गुटका खाते है 10 रुपये रोज़ के हिसाब से कम से कम 300 रुपये की सिगरेट पी जाते 300 करोड़ लोग कितने का अमल करते होंगे और बच्चों की तालीम पर खर्च करने के लिए उनके पास पैसा नही होता।कुत्तों को पढ़ा कर बिरगेडियर बनाया जारहा। यहाँ मुसलमान बच्चों को पढ़ाना नही चाहते उन पर पैसे खर्च नही करना चाहते इसलिए आज मुस्लिम समाज इतने पीछे है हर फील्ड में और बच्चे भी वैसे ही हो गये है पढ़ना नही चाहते।

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