कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिन्हें अपने मां-बाप या दोस्तों से पूछने में इंसान को श’र्म लगती है लेकिन दीन की बातें पूछने या बताने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए मर्द जो होता है अपने सवाल के जवाब उलमा से पूछ लेते हैं लेकिन और’तों को अपने मसा’इल जाने के लिए काफी दिक्कत और परे’शानी का सामना करना पड़ता है कोई भी मसला हो चाहे वह औरत के लिए हो या मर्दों के लिए जरूर जाना करें।
इसलिए उसमें बहुत सी बारी’कियां छुपी होती है एक सवाल काफी दिनों से सामने आ रहा था की औरतों पर किस वक़्तों पर ग़ुस्ल वाजिब होता है यानी वो वजह जिनकी वजह से औरत को ग़ुस्ल करना जरूरी है इस सवाल का जवाब हम आपको तफसील से बताते हैं सवाल यह है औरतों पर गुसल कब वाजिब होता है उसका एक तो जवाब ये है जब है’ज़ आजाये ( महीना आजाये) तो वक़्त पूरा होने पर उस पर ग़ुस्ल करना ज़रूरी है दोसरा जब वो अपने पति से जि’मा करे (सोहबत करे) चाहे वो फा’रिग हो या नही दु’खुल करते ही ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है ।
एक मसला जान लें कि मही’ना पूरा होने के बाद जब खून बंद हो जाए और गुसल करके पाक हो जाए उसके बाद अगर सल’वार पर खून के दा’ग लगते हो ऐसी सूरत में दुबारा गुसल करना वाजिब हो जाता है उसके अलावा पति के साथ सो रहे हैं और एक दूसरे के साथ खवाइश के साथ चिमट रहे है या चूम’मचाट रहे हों तो ऐसी सूरत में अगर कोई रा’तूबत महसूस करें तो गुसल करना वाजिब हो जाएगा लेकिन अगर किसी बी’मारी की वजह से है तो ग़ुस्ल वाजिब नही होगा ।
एक अहम बात पति और पत्नी चाहे एक दूसरे के साथ गुसल कर सकते हैं लेकिन गुसल के बीच में एक दूसरे से जिस्मों से लज्ज’त हासिल करना जाय’ज नहीं होगा ऐसे करने से दोबारा रातूबत के निकलने की वजह बन सकता है जिस से ग़ुस्ल दुबा’रा वाजिब हो जाएगा हमें इस्लाम को पढ़ने और सीखने की जरूरत है क्योंकि हमने ना इस्लाम को कभी सीखा है ना हम पूछने की कोशिश करते हैं कोई भी ऐसा मसला हो अपने उलमा से जरूर पूछ लें क्योंकि जब तक गुसल सही नहीं होगा तो वज़ू भी नही होगा और न ही नमाज़ ।
ग़ुस्ल में तीन चीज फ’र्ज है कुल्ली करना गरारे के साथ अगर रोज़ा ना हो नाक की नर्म हड्डी तक पानी पहुंचाना तीसरे पूरे बदन पर इस तरह पानी बहाना कहीं बाल के बराबर भी सूखा ना रह जाए अगर थोड़ा भी सू’खा रह गया तो ग़ुस्ल सही नहीं होगा ।