लेखक- मोहम्मद आवशरुद्दीन रिसर्च स्कॉलर MANUU
बिहार के हालिया चुनाव नतीजे सिर्फ सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं बताते। यह चुनाव बताता है कि राजनीति अब पुराने जातीय गणित और आख़िरी समय की रैलियों पर नहीं टिकती। आज की लड़ाई पूरी तरह विचारधारा बनाम विचारधारा की है। जिस दल की आइडियोलॉजी साफ़ है, जिसका संदेश समाज में उतरा है, वही जनता में भरोसा बना पा रहा है।
महागठबंधन की हार को इस नज़र से देखें तो वह केवल सीटों की कमी नहीं, बल्कि विचारधारात्मक कमजोरी भी है। इनका संदेश न तो नीचे तक गया, न ही सामाजिक स्तर पर प्रभावी उपस्थिति बन पाई।
*BJP की बढ़त: समाज में गहरी पहुँच और लगातार काम*
BJP ने पिछले कई वर्षों में चुनावी राजनीति से आगे बढ़कर समाज के भीतर अपनी मौजूदगी मजबूत की है।
गाँवों के मेले हों, धार्मिक आयोजन हों या छोटे–छोटे स्थानीय पर्व
पार्टी ने इन्हें सनातन संस्कृति और राष्ट्रभक्ति से जोड़कर एक वैचारिक प्रवाह तैयार किया।
इसमें पार्टी का नाम कम दिखता है, पर विचारधारा गहराई से उतरती है।
यही निरंतर काम BJP को एक ऐसी सामाजिक पकड़ देता है, जो सिर्फ चुनावी चर्चाओं से नहीं बनती।
*महागठबंधन की सबसे बड़ी कमी: अपना सामाजिक तंत्र ही नहीं*
इसके विपरीत RJD और कांग्रेस ने अपने स्वतंत्र सामाजिक संस्थान खड़े करने या लगातार सक्रिय रखने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं किया।
यह गठबंधन अधिकतर BJP के बनाए नैरेटिव पर प्रतिक्रिया देता रहा।
अपने पिछड़े समाज सुधारकों, नेताओं और ऐतिहासिक नेतृत्व को जनता से जोड़ने वाले कार्यक्रम या अभियान लगभग न के बराबर रहे
डिमांड यह थी कि ये दल अपनी विचारधारा को ज़मीनी स्तर पर स्थापित करते।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
*Left Front: एकमात्र दल जिसकी आइडियोलॉजी आज भी साफ़*
वर्तमान परिस्थिति में यह बात भी सामने आई कि BJP का वैचारिक मुकाबला सिर्फ Left Front ही कर सकता है।
लेफ्ट के पास:
स्पष्ट विचारधारा,
मजबूत संगठनात्मक ढांचा,
और समाज में लगातार उपस्थित रहने की राजनीतिक संस्कृति है।
इस चुनाव में लेफ्ट की सक्रियता ने यह साफ़ किया कि विचारधारात्मक राजनीति का अपना प्रभाव आज भी मौजूद हैबस उसे निरंतरता की आवश्यकता है।
*चुनाव का सामाजिक गणित: Yadav–Muslim तक सीमित*
मतदाताओं के पैटर्न से तस्वीर साफ़ है:
मुस्लिम समुदाय से लगभग 18प्रतिशत में से 14% वोट महागठबंधन को मिला।
यादव समुदाय से करीब 14 प्रतिशत में से 8% वोट जुड़ा।
बाकी वोट उम्मीदवार, स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरण पर बँट गए
यानी चुनाव अंततः Yadav + Muslim सामाजिक आधार तक सिमटकर रह गया।
यह सीमित आधार बहुमत के लिए पर्याप्त नहीं हुआ
*ग़रीब और वंचित वर्गों का BJP की ओर झुकाव*
चौंकाने वाली बात यह रही कि ग़रीब, मजदूर, वंचित और ग्रामीण तबके
जो लंबे समय से महागठबंधन की ताकत माने जाते थे—
इस बार बड़ी संख्या में BJP के पक्ष में गए।
उनके लिए स्थिरता, विकास और राष्ट्रवादी संदेश अधिक प्रभावी साबित हुए।
*निचोड़: राजनीति अब सिर्फ गठबंधन नहीं, विचारधारा मांगती है*
बिहार चुनाव यह साफ़ करता है कि:
बिना स्पष्ट विचारधारा,
बिना सामाजिक संस्थानों में काम,
और बिना ग्रासरूट उपस्थिति
किसी भी गठबंधन की राजनीति अधूरी है।
आगे वही दल बढ़त लेगा जो जनता के बीच लगातार, संगठित और विचारधारात्मक रूप से साफ़ दिखाई देगा।
कुछ सीटों पर प्रशांत किशोर भी फैक्टर है जो युवा तर्किक राजद के साथ थे वह प्रशांत किशोर के साथ चले गए