तेल अवीव पर हमले के बाद इज़राइल के समर्थन में खड़े हुए यूरोपीय देश अब दो साल बाद उसी सरकार पर जनसंहार (genocide) के आरोपों के चलते प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं। 2023 से जारी हमलों में 67,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र जांच आयोग ने हाल ही में निष्कर्ष निकाला कि इज़राइल ने ग़ज़ा में जनसंहार किया है। नाकेबंदी और भूखमरी से अब तक 460 से अधिक लोगों, जिनमें 150 बच्चे शामिल हैं, की मौत हो चुकी है।

यूरोप में लगातार बढ़ते प्रदर्शनों और राजनीतिक दबाव ने यूरोपीय संघ (EU) को अपने रुख पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया है। 2024 में यूरोपीय आयोग ने इज़राइल के साथ अपने एसोसिएशन एग्रीमेंट की समीक्षा में मानवाधिकार उल्लंघनों की पुष्टि की थी। इसके बाद ब्रसेल्स ने व्यापार लाभ रोकने, उग्रवादी इज़राइली नेताओं पर प्रतिबंध लगाने और फंड रोकने का प्रस्ताव रखा।

हालांकि, सदस्य देशों के बीच मतभेद अब भी गहरे हैं — स्पेन और आयरलैंड कड़े कदमों की वकालत कर रहे हैं, जबकि कुछ देश अमेरिकी और इज़राइली हितों से टकराव से बचना चाहते हैं।

अनादोलू एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मानवाधिकार कार्यकर्ता केनेथ रोथ ने अनादोलू एजेंसी से कहा, “EU ने देर से समझा कि इज़राइल का जवाब सिर्फ़ सैन्य नहीं, बल्कि नागरिकों पर युद्ध है।” उन्होंने यह भी कहा कि “EU की निष्क्रियता उसकी विश्वसनीयता को कमजोर करती है।”

ह्यूमन राइट्स वॉच के क्लॉडियो फ्रांका‍विला ने कहा कि “EU की प्रतिक्रिया बहुत कमज़ोर और बहुत देर से आई है। अब इज़राइल यूरोप में अपने पुराने सहयोगी खो रहा है।”

ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट की नियम नी भ्रियान ने EU पर जनसंहार रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “अगर न्याय होता, तो EU नेताओं को हेग में मुक़दमे का सामना करना पड़ता।”

यूरोपीय संघ के इस रुख़ परिवर्तन को अब ग़ज़ा में जारी युद्ध और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई शांति योजना के साये में देखा जा रहा है — जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यूरोप इस बार वास्तव में इज़राइल पर दबाव बना पाएगा या फिर एक बार फिर अमेरिकी नीति के पीछे छिप जाएगा।