Iman kya hai ~ “हुज़ूरे अक़दस स० अ० का इरशाद है कि हक़ तआला शानहु फ़रमाते हैं कि मै बंदे के साथ वैसा ही मआमला करता हूँ जैसा कि वह मेरे साथ गुमान रखता है। और जब वह मुझे याद करता है तो मै उसके साथ होता हूँ । पस अगर वह मुझे दिल मे याद करता है तो मै भी उसको अपने दिल मे याद करता हूँ ।अगर वह मेरा मजमेअ मे ज़िक्र करता है तो मैं उस मजमेअ से बेहतर यानी फ़रिश्तों के मजमेअ में ( जो मासूम और बे गुनाह हैं ) तज़किरा करता हूँ। और अगर बंदा मेरी तरफ़ एक बालिश्त मुतवज्जेह होता है तो मै एक हाथ उस की तरफ़ मुतवज्जेह होता हूँ। और अगर वह एक हाथ बढ़ता है तो मैं दो हाथ उधर मुतवज्जेह होता हूँ।और अगर वह मेरी तरफ़ चल कर आता है तो मै उसकी तरफ़ दौड़ कर चलता हूँ।”
इस हदीस की रोशनी मे हमें समझना चाहिए कि अल्लाह अपने बंदे से उसके गुमान के मुताबिक मामला करते हैं। इसका मतलब यह हैं कि हमें अल्लाह तआला से उसके लुत्फ औ करम की उम्मीद रखनी चाहिए।उसकी रहमत से हरगिज़ मायूस नहीं होना चाहिए।यक़ीनन हम लोग गुनाहगार हैं । अपने गुनाहों और हरकतों की सज़ा और बदले का यक़ीन रखते हैं।लेकिन अल्लाह की रहमत से मायूस भी नहीं होना चाहिए । क्या ख़बर अल्लाह तआला महज़ अपने लुत्फ़ औ करम से बिल्कुल ही माफ कर दे। अल्लाह तआला कुरआन शरीफ मे फ़रमाते भी हैं,”इन् नल लाहा ला यग़फ़िरु अयं युशरका बिही व यग़फ़िरु मा दूनि ज़ालिका लिमयीं यशाऊ” जिसका तर्जुमा है कि अल्लाह तआला शिर्क के गुनाह को माफ़ नहीं करेंगे।
इसके अलावा जिस को चाहेंगे सब कुछ माफ फरम देंगे।लेकिन ज़रुरी नहीं कि माफ़ ही फ़रमा दें। इसलिए उलमा फ़रमाते हैं कि ईमान उम्मीद और ख़ौफ़ के दरमियान है। हुज़ूर स० अ० एक सहाबी के पास तशरीफ़ ले गये जो नज़अ ( मौत का वक्त) की हालत मे थे। आप स० अ० ने अर्ज़ किया किस हाल मे हो ? फ़रमाया , या रसूल अल्लाह अल्लाह की रहमत का उम्मीदवार हूँ। और अपने गुनाहों से डर रहा हूँ।आप स० अ० ने फ़रमाया ,ऐसी हालत मे अल्लाह जल्ले शानहु जो उम्मीद हो वह अता फ़रमा देते हैं। और जिस का खौफ़ हो उससे अमन अता फ़रमा देते हैं। ~ Iman kya hai