नमाज़ इस्लाम के पाँच अरकान मे से एक है ।रिवायतों मे आता है कि हिसाब के रोज़ सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा ।जिसकी नमाज़ सही निकली उसके लिए बशारत है। इब्ने कय्यम रज़ि० अ० ,ने नमाज़ियों के पाँच दर्जे बताये हैं। 1) पहला दर्जा है सुस्त। कभी नमाज़ पढ़ी कभी छोड़ दी। यह जहन्नुम मे जायेगा। 2) बाक़ायदा नमाज़ पढ़ने वाला। यह अपने ही ध्यान मे ही नमाज़ पढ़ता है । कभी नमाज़ मे अल्लाह का धयान नहीं आया। इस की हिसाब के रोज़ डाँट डपट होगी। 3) तीसरे दर्जे के नमाज़ी वह हैं जो ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं लेकिन ध्यान जम नहीं पाता। कभी अल्लाह का ध्यान आता है कभी निकल जाता है। यह रहमत का उम्मीदवार होगा कि कम से कम कोशिश तो की।

4)चौथा मजहूर है । अल्लाहु अकबर कहता है तो दुनिया से कट जाता है , अल्लाह तआला से जुड़ जाता है। यह जो सलाम फेरते हैं इसकी हिकमत यह है जब आदमी अल्लाहु अकबर कहता है त़ वह ज़मीन से उठ जाता है और आसमानों मे दाखिल हो जाता है।अब वह ज़मीन पर नहीं बल्कि कहीं और गया हुआ है।जब नमाज़ खत्म हुई तो वापस आया।इधर उधर वालों को भी सलाम करता है।यह दर्जा है चौथा ,यहाँ से नमाज़ का अज्र शुरू होता है।इस नमाज़ी की ज़िन्दगी कभी भी खराब नहीं होगी।

5) पाँचवा दर्जा नमाज़ का वह है जो मुकर्रबीन की नमाज़ है।अंबिया सिद्दीकीन की नमाज़ है। इन की आँखों की ठंडक नमाज़ बन जाती है। जैसे हज़रत अली रज़ि० अ० की नमाज़ है। तीर लगा तो सारा ज़ोर लगाया निकालने के लिए पर नहीं निकल सका। फरमाया छोड़ दो नमाज़ मे निकाल लेंगे। नमाज़ की नीयत बांधी तो उस तीर को निकाला गया। और हज़रत अली रज़ि ० अ० के जिस्म मे जूंबिश भी नहीं हुई। सलाम फेरने के बाद पता चला कि तीर निकाल लिया गया है। फरमाया कि मुझे तो पता ही नहीं चला। यह है नमाज़ मुकर्रबीन की। (मौलाना तारीक़ जमील के बयान के सोजन्य से )

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