1) “हुज़ूरे अकरम स० अ० का इरशाद है कि मेरे रब ने मुझ पर यह पेश किया कि मेरे लिए मक्का के पहाड़ों को सोने का बना दिया जाए। मैने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह मुझको तो यह पसंद है कि एक दिन पेट भर कर खाऊँ तो दूसरे दिन भूका रहूँ। ताकि जब भूका रहूँ तो तेरी तरफ़ ज़ारी करुँ और तुझे याद करुँ और जब पेट भरुँ तो तेरा शुक्र करुँ, तेरी तारीफ करुँ।” 2)एक मरतबा हज़रत उमर रज़ि० अ० की ख़िदमत मे हाज़िर हुए तो देखा कि आप स० अ० बोरिये पर लेटे हुए थे जिस पर कोई चीज़ बिछी हुई थी।जिस की वजह से आप स० अ० के जिस्म ए अतहर पर बोरिये के निशानात भी उभर आये थे।सरहाने एक चमड़े का तकिया रखा हुआ था जिसमे खुजूर की खाल भरी हुई थी। हज़रत उमर रज़ि० अ० ,ने आप स० अ० से अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह आप दुआ कीजिए कि आप की उम्मत पर भी वुसअत हो।
यह रोम और फारस वाले बे दीन होने के बावजूद कि अल्लाह की इबादत नहीं करते ,उन पर तो यह वुसअत हो,यह क़ैसर औ किसरा तो बागों के और नहरों के दरमियाँ हो और आप( स० अ०) अल्लाह के रसूल और ख़ास बन्दे हो कर यह हालत। आप स० अ० ने यह सुनकर इरशाद फ़रमाया कि उमर(रज़ि ० अ०) क्या अब तक इस बात के अंदर शक मे पड़े हुए हो।सुनो : आख़िरत की वुसअत दुनिया की वुसअत से बहुत बहतर है।इन कफ़फार को तो तय्यबात और अच्छी चीज़ें दुनिया मे मिल गई हैं। हमारे लिए आख़िरत है। हज़रत उमर रज़ि ० अ० ने फ़रमाया कि या रसूल अल्लाह मेरे लिए इस्तग़फ़ार की दुआ करें कि वाक़ई मैने ग़लती की।
3) हज़रत आयशा रज़ि० अ० से किसी ने पूछा कि आप के घर मे हुज़ूर स० अ० का बिस्तरा कैसा था।फ़रमाया ,एक चमड़े का था जिसमें खुजूर की ख़ाल भरी हुई थी। 4)हज़रत हफ़स़ा रज़ि अ० से किसी ने पूछा कि आप के घर मे हुज़ूर स० अ० का बिस्तरा कैसा था।फ़रमाया ,एक टाट था जिसको दोहरा करके हुज़ूर स० अ० के नीचे बिछा देती थी। इक मरतबा इसको चोहरा करके बिछा दिया था तो आप स० अ० ने अर्ज़ किया इसको पहले जैसा कर दो। इसकी नर्मी रात को उठने में मानेअ बनती है। (हवाला : फ़जा़इले आमाल )