नई दिल्ली: सुबह से शुरू हुए शोर के बाद आख़िर दोपहर में कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने भाजपा का दामन थाम लिया. राहुल गांधी के क़रीबी माने जाने वाले जितिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते हैं. हालाँकि ये भी सच है कि चाहे 2019 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव, दोनों में ही जितिन पार्टी को कोई ख़ास कामयाबी नहीं दिला सके थे.
उनके भाजपा में शामिल होने के कयास तो पहले से ही लग रहे थे लेकिन तब वह इनका खंडन कर देते थे. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब कुछ ही महीने बाक़ी हैं, ऐसे में जितिन का भाजपा में जाना इस बात का संकेत है कि वो पार्टी से चुनाव के सिलसिले में कोई ज़िम्मेदारी या टिकट चाहते हैं. 47 वर्षीय जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने वाले राहुल गांधी के दूसरे सबसे करीबी नेता होंगे.
कांग्रेस से 20 साल से जुड़े जितिन की नाराजगी किसी से छुपी नहीं है. वे उस “G-23” या कांग्रेस के उन 23 नेताओं के समूह का हिस्;सा थे, जिन्होंने पार्टी में व्यापक सुधार की जरूरत बताते हुए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. इस पत्र में उन्होंने पार्टी में पूर्णकालिक नेतृत्व की आवाज बुलंद की थी. हालाँकि जानकार मानते हैं कि प्रदेश स्तर के कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को अब ज़्यादा एहमीयत नहीं दे रहे थे. कई कांग्रेस नेताओं को पहले से अंदाज़ा था कि जितिन कभी भी भाजपा में जा सकते हैं.
यूपी की धौराहरा सीट से पूर्व सांसद रहे जितिन, राज्य में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं. ‘लेटर ब’म’ मामले के बाद यूपी कांग्रेस ने जितिन के खास उल्लेख के साथ G-23 के नेताओं पर कार्रवाई की मांग की थी. इस कार्रवाई को पक्ष में जितिन के परिवार की गांधी परिवार के प्रति ‘संदिग्ध निष्ठा’ का उल्लेख किया था. जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1999 में पार्टी में सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी थी और उनके खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था.