दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि भले केंद्र में नरेंद्र मोदी के नाम पर लोग भाजपा कप वोट दे देते हैं लेकिन राज्यों के चुनाव में भाजपा पस्त होती दिख रही है। कई राज्यों से ऐसा ट्रेंड चल रहा है और दिल्ली में एक बार फिर ये साबित हो गया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा का सफ़ाया हो गया वो उसके लिए चिंता की बात है।
चिंता इसलिए भी अधिक है क्योंकि आम आदमी पार्टी यहाँ लगातार दो चुनाव जीत चुकी थी और सत्ता के प्रति जनता की नाराज़गी आम तौर पर होती है लेकिन ऐसा कुछ नज़र नहीं आया और आम आदमी पार्टी ने हैट्रिक लगा दी। भाजपा ने पूरे दम के साथ यहाँ चुनाव लड़ा लेकिन आम आदमी पार्टी के क़िला भेदना तो दूर की बात है, एक ईंट भी नहीं हटाई जा सकी। भाजपा के वरिष्ठ नेता इस बात को लेकर शॉक्ड हैं कि हर तरह के पैंतरे लगा कर भी पार्टी दहाई का आँकड़ा नहीं छू सकी।
आम आदमी पार्टी के प्रचार अभियान की बहुत तारीफ़ हो रही है, कहा जा रहा है कि बहुत बहकाने की कोशिश की लेकिन आम आदमी पार्टी अपने हिसाब से ही मैदान में डटी रही। इस रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर को माना जा रहा है। प्रशांत किशोर की कंपनी ने जिस अंदाज़ में आम आदमी पार्टी का चुनावी कैम्पेन संभाला है वो भाजपा को भी चौंका गया है। किशोर ने ही इस तरह का जाल बुना के उसे भेदना भाजपा के लिए असंभव हो गया।
अरविंद केजरीवाल से लेकर हर बड़े छोटे नेता के बयान को कैसे पेश करना है, कैसे ज़रूरी मुद्दोज की बात करनी है ये किशोर ने किया। इसको देखते हुए अब ख़बर है कि प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अपना हुनर दिखा सकते हैं। बिहार में तो वो पहले से ही एक्टिव रहे हैं और माना जा रहा है कि वो राजद+कांग्रेस महागठबंधन के लिए चुनावी रणनीति बना सकते हैं।
अब ख़बर है कि समाजवादी पार्टी में चर्चाएँ शुरू हैं कि प्रशांत किशोर की कंपनी को चुनावी रणनीति बनाने की ज़िम्मेदारी दे देनी चाहिए। समाजवादी पार्टी के इंटरनेट कैम्पेन को अभी से शुरू करने की बात भी की जा रही है। आम आदमी पार्टी ने अगर इतनी बड़ी जीत हासिल की है तो उसके पीछे उसने कड़ी मेहनत भी की है। सपा इस बात को समझ रही है, सपा के कुछ नेताओं का अनुमान है कि बहुजन समाज पार्टी टूटने की कगार पर है और उसका वोट अगर सपा को अपने पाले में करना है तो उसे अभी से काम करना होगा।