सूफ़ी मिज़ाज लोगों को ख़ासा भाता है ये एक ऐसा रंग है जो सुनने वाले की भावनाओं के अनुसार बद’लता है। यहाँ इबादत भी होती है और इश्क़ भी और दोनों को ही बड़ी शिद्दत से महसूस किया जाता है शायद यही कार’ण है कि किसी भी तरह का संगीत पसंद करने वाले व्यक्ति को सूफ़ी संगीत अपनी ओर खीं’चता है। वैसे तो सूफ़ी गीत- संगीत को पेश करने का एक अलहदा अन्दाज़ है और अल’ग-अल’ग तरह के स्टाइल भी हैं लेकिन “सूफ़ी ब्रदर्स” एक ऐसा नाम हैं, जो सूफ़ी मिज़ाज को एक बेह’द अल’ग अन्दाज़ में पेश करते हैं और इस अन्दाज़ के चाहने वाले दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं।
सूफ़ी ब्रदर्स यानी इंदौर के रहने वाले 36 वर्षीय आफ़ताब क़ादरी और अकोला के रहने वाले 28 वर्षीय तारिक़ फ़ैज़। ये दोनों मिलकर सूफ़ी की एक अलग ही धा’रा बहा रहे हैं। आफ़ताब क़ादरी, जो इंदौर के खजराना स्थित नाहर शाह वली की दरगाह के पगड़ीबं’द क़व्वाल पीढ़ी से आते हैं, इनकी रगों में क़व्वाली का गुर बसा है। वहीं अकोला में रहने वाले तारिक़ फ़ैज़ के पिता एक नामी शाइर हैं जिसके कार’ण उनको घर में बचपन से शाइरी का माहौ’ल मिला और बाद में संगीत में रुचि बढ़ती चली गयी।

यूँ तो सूफ़ी ब्रदर्स 5 साल से साथ मिलकर महफ़िलों की रौन;क़ बढ़ा रहे हैं लेकिन इनकी मुला;क़ात का क़ि’स्सा भी बड़ा दिलचस्प है। दरअसल सूफ़ी ब्रदर्स के तारिक़ फ़ैज़ MBBS की पढ़ाई करने अकोला से इंदौर गए और कुछ ही दिनों में वो संगीत की क’मी महसूस करने लगे। करियर से आगे संगीत को चुनने का विकल्प परिवार से तारिक़ को नहीं मिला था। कुछ दिन छुपछुपा के अकोला जाकर रिया’ज़ कर आते लेकिन ये भी आसान तो था नहीं। जल्द ही उन्हें लगा कि रोज़ाना संगीत की ख़ु’राक मिल सके ऐसा इन्तज़ाम किया जाए और एक दिन संगीत की ये प्यास और चाह उन्हें नाहर शाह वली की दरगाह खजराना ले आयी।
यहीं मुलाक़ात हुई सूफ़ी ब्रदर्स की, आफ़ताब क़ादरी को नौजवान तारिक़ फ़ैज़ के अंदर संगीत के प्रति वो प्रेम और जु’नून नज़र आया जो उनके दिल में भी बसता है। बस धीरे-धीरे बन गयी जोड़ी सूफ़ी ब्रदर्स की। यूँ तो क़व्वाली के कई प्रोग्राम होते हैं लेकिन सूफ़ी ब्रदर्स में ऐसा क्या ख़ास है? अगर आप ये सवा’ल अपने मन में लिए घूम रहे हैं तो हम आपको बता दें कि सूफ़ी ब्रदर्स की ख़ासियत है दो अलग धा’राओं का मिलन।

जी हाँ, आफ़ताब क़ादरी मशहूर अज़ीज़ मियाँ के अन्दाज़ को बयान करते हैं ये एक ऐसा अन्दाज़ है जहाँ बोलों को ख़ास तरजीह दी जाती है। वहीं तारिक़ फ़ैज़ छोटी उम्र से ही नुसरत फ़तह अली ख़ां के मुरीद रहे हैं और उनकी गायकी में यही अन्दाज़ झलकता है। नुसरत साहब का अन्दाज़ यानी गायकी में शास्त्रीय संगीत का पुट। ये दो बिलकुल अलग धाराएँ हैं जो शाइरी के शौक़ीनों का मन मोहती हैं। पर ये सूफ़ी ब्रदर्स का ही कमाल है जो इन दोनों अलग धा’राओं को साथ लेकर एक नयी धा’रा बहा रहे हैं। इसके लिए इन्हें साथ मिलकर काफ़ी मेहनत भी करनी पड़ी है और यही मेहनत है जो आज इन्हें महफ़िलों की जा’न बनाती है और ये जीत लेते हैं बड़े- बड़े शाइरों के दिल चुटकियों में।