संपत्ति को लेकर अक्सर विवाद देखने को मिलते हैं। ये एक ऐसा मामला है जिसके कारण कई परिवार भी उजड़ जाते हैं। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिसमें एक ही परिवार के लोग संपत्ति के लिए आपस में लड़ बैठते हैं। कई बार अपने देखा होगा की शख्स अपनी मौत से पहले ही अपनी संपत्ति किसी के नाम कर देते हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी शख्स होते हैं जो मौत से पहले वसीयत नहीं लिख पाते। आज हम आपको बताने वाले हैं कि ऐसे दोनों ही मामलों में संपत्ति का असल हकदार कौन होगा।
एक सर्वे के अनुसार बहुत से ऐसे मामले देखे गए हैं, जिसमें मरने वाले शख्स की बेटियों को संपत्ति का हिस्सेदार नहीं बनाया जाता है। अगर ऐसा आपके साथ भी होता है तो आप कानून का सहारा ले सकते हैं और अपना हक आसानी से हासिल कर सकते हैं। दरअसल, संपत्ति को लेकर स्पष्ट कानून हैं, जिनके मुताबिक तय है कि कौन किस संपत्ति में हकदार है और कौन नहीं।
कानून के तहत पुश्तैनी संपत्ति पर बेटियों का पूरा अधिकार है। जितना हिस्सा बेटों को मिलता है, उतना ही हिस्सा बेटियों को मिलना चाहिए। लेकिन अगर कोई शख्स जिंदा रहते हुए अपनी स्वअर्जित संपत्ति को अपने पोतों के नाम कर देता है तो इसपर बेटियों का कोई हक नहीं रह जाता। ऐसे में वह कानून का सहारा भी नहीं ले सकतीं। अगर पिता की मौत बिना वसीयत लिखे हुई है तो बेटी इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ सकती है।
हिंदूउत्तराधिकार कानून, 1956 के तहत अगर बिना वसीयत लिखे ही किसी शख्स की मौत हो जाती है तो उसकी स्वअर्जित संपत्ति पर पत्नी, बच्चे और मृतक की मां का बराबर अधिकार होगा। ऐसे में ये सभी लोग कानून का सहारा लेकर अपना हक पा सकते हैं। स्वअर्जित संपत्ति के मामले में बेटियों का पक्ष थोड़ा कमजोर होता है, अगर जीते जी पिता ने अपनी संपत्ति को किसी और के नाम कर दिया है या बेटी को संपत्ति देने से इनकार कर दिया है तो इसमें बेटी किसी भी तरह इसमें अपने हिस्सेदार होने का दावा नहीं कर सकती।