NRC, CAA और NPR के मु’द्दे पर क़रीब एक महीने से सरकार को तरह-तरह के विरो’ध का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की नीतियों के ख़िला’फ़ छात्रों के साथ-साथ आम जनता भी सड़कों पर आ गयी है। अपनी ही तरह के शांतिपू’र्ण विरो’ध प्रद’र्शन हो रहे हैं। CAA में जहाँ जाती विशेष को बाहर रखने पर शुरू हुए इस प्रद’र्शनों के बीच जब NPR का मु’द्दा सामने आया तो विरोध का दौ’र और बढ़ गया। इस मु’द्दे पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने अपना प’क्ष रखा।
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने NPR को भ्र’म पैदा करने वाला बताते हुए कहा कि इसमें कुछ सुधा’र की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि “सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी NPR से प्रतिवा’दी के माता-पिता के जन्म तारीख और स्थान के प्रश्नों को ह’टाने पर वि’चार कर सकती है क्योंकि इससे लोगों में भ्र’म पैदा हो रहा है। यहाँ तक कि मैं भी अपनी जन्मतिथि नहीं जानता। ऐसे में परिजन जन्मतिथि का सबू’त कहाँ से देंगे। इस बारे में मैंने गृह मंत्रालय से पहले ही कहा था कि इन सवा’लों से भ्र’म पैदा होगा।”
रामविलास पासवान ने CAA और NPR पर चल रहे विरो’ध प्रद’र्शनों का समर्थन करते हुए कहा कि वो ख़ुद छात्र जीवन में कई आंदो’लनों का हि’स्सा रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि “मैं ख़ुद 1974 के छात्र आंदो’लन से राजनीति में आया हूँ। छात्रों की अपनी भावना है, उन्हें रो’क भी नहीं सकते। हम उनके बारे में धर्म के आधा’र पर सोचते भी नहीं हैं कि वे जा’मिया मि’लिया इस्ला’मिया और जेएनयू के हैं।”
आगे उन्होंने विरो’ध प्रद’र्शनों को संविधान सम्मत बताते हुए कहा कि “संविधान ने सभी को अपनी बात रखने का अधि’कार दिया है। चाहे कोई भी सरकार हो किसी सरकार की हि’म्मत नहीं है कि भारतीय नागरिक चाहे हिंदू, मुस’लमान, सिख या इसाई हो उसकी नागरि’कता ख’त्म कर दे। मुझे अपनी असली जन्मतिथि मालूम नहीं है तो क्या हम हिंदुस्तान के नागरि’क नहीं हुए?”

रामविलास पसवान ने आगे कहा कि “हम लोग बचपन से यह पढते आए हैं कि वाणी में स्वतं’त्रता और क’र्म पर नियं’त्रण होना चाहिए। एनपीआर का सीएए से कोई संबं’ध नहीं है और एनआरसी केवल असम के लिए है जो 1971 से चला आ रहा है” रामविलास ने सर’कार का प’क्ष रखते हुए कह कि “सर’कार का मानना है कि पाकि’स्तान, बंग’लादेश और अफ’गानिस्तान के इ’स्लामी राष्ट्र होते हुए भी वहां उसी धर्म के लोग हैं तो कैसे उन्हें अ’ल्पसंख्य’क और स’ताया हुआ माना जाए लेकिन 1955 के अधिनियम के तह’त किसी को भी नागरि’कता देने से रो’का नहीं जा सकता है”