हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में अगर दो बेहतरीन आवाज़ों की बात की जाए तो उनमें मुहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ पहले पायदान पर मिलती हैं। एक वक़्त तो ऐसा था कि मुहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का साथ गाना ही फ़िल्म के चलने का कारण बन जाता था। मुहम्मद रफ़ी जो किसी भी अभिनेता के लिए उनके ही अन्दाज़ में गीत गाने में माहिर थे वहीं लता मंगेशकर सभी अभिनेत्रियों की पसंद थीं। लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया जब इन दोनों महान गायकों ने एक-दूसरे के साथ गाने से इं’कार कर दिया था।
जी हाँ, ये ऐसा वक़्त था जब फ़िल्मी गीतों के लिए गायकों को रॉयल्टी मिलने की बात उठने लगी थी। कई गायक, गायिकाएँ इस बात के पक्ष में थे लेकिन मुहम्मद रफ़ी को ये बात सही नहीं लग रही थी। उनका कहना था कि “जब हम गीत गाते हैं तब हमें गाने के पैसे मिल जाते हैं तो हम बाद में रॉयल्टी क्यों लें, हमारा पैसा तो हमें तुरंत ही मिल जाता है।” रॉयल्टी लेना मुहम्मद रफ़ी को हक़ नहीं लगता था उन्हें इसी बात से परहेज़ था कि वो मेहनत के पैसे लेने के बाद बार-बार एक ही गीत से पैसे कमाते रहें।

ऐसे समय में लता मंगेशकर रॉयल्टी के पक्ष में थीं, उनका कहना था कि एक गायक का गीत पर हक़ होता है और उसे वो रॉयल्टी लेने का अधिकार है। इस विषय पर जब म्यूज़िक कंपोज़र और गायक गायिकाओं की एक मीटिंग हुई तो वहाँ लता मंगेशकर की बातें मुहम्मद रफ़ी को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने उसी समय खड़े होकर कहा कि “मैं आज से लता के साथ नहीं गाऊँगा”
इस बात का जवाब देते हुए लता मंगेशकर ने कहा “रफ़ी साहब एक मिनट..आप मेरे साथ नहीं गाएँगे ये ग़लत बात है..मैं आपके साथ नहीं गाऊँगी” और लता मंगेशकर का कहना है कि उन्होंने वहीं के वहीं अपने सभी म्यूज़िक डायरेक्टर से कह दिया कि अगर कोई युगल गीत हो जिसमें रफ़ी साहब हों तो वो उसमें नहीं गाएँगी।

काफ़ी बाद में म्यूज़िक कंपोज़र जोड़ी शंकर- जयकिशन के जयकिशन जी ने दोनों के बीच सलाह करवायी। लता मंगेशकर ने अपने एक इंटर्व्यू में बताया कि उन्होंने कहा कि उन्हें रफ़ी साहब से लिखित में माफ़ी चाहिए तभी वो काम करेंगी। उनका कहना है कि रफ़ी साहब ने उन्हें लिखित में माफ़ी दी और बाद में दोनों ने साथ में काम किया लेकिन लता मंगेशकर का कहना है कि वो जब-जब रफ़ी साहब को देखती थीं उनके मन में वो बात हरी हो जाती थी।