Fri. Apr 19th, 2024
Indira Gandhi ko kaise mili PM ki kursi

Indira Gandhi ko kaise mili PM ki kursi?

बहुत से लोगों को इस बात का भ्रम है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कांग्रेस पार्टी का उत्तराधिकारी अपनी बेटी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi ko kaise mili PM ki kursi?) को बनाया था. इस भ्रम के पीछे एक कारण तो ये है कि नेहरु के निधन के बाद इंदिरा गांधी का राष्ट्रीय राजनीति में उदय वहीं दूसरा कारण ये है कि आजकल का व्हाट्सअप ज्ञान. आम तौर पर लोगों को व्हाट्सअप पर या फिर सोशल मीडिया पर कोई भी चौंकाने वाली जानकारी मिलती है तो उन्हें लगता है कि यही सच है. हालाँकि हर वो बात जो आपने कहीं सुनी है या फिर व्हाट्सअप पर पढ़ी है वो सच नहीं होती.

चलिए मुद्दे पर आते हैं. हम सभी जानते हैं कि इंदिरा गांधी जब बहुत छोटी थीं तबसे ही वो देश हित के लिए सक्रिय थीं. सन 1924 में वो महात्मा गांधी के अनशन में भी शामिल हुईं थीं, तब उनकी उम्र महज़ सात साल थी. इंदिरा ने बड़े होते हुए आज़ादी को लेकर संघर्ष और बंटवारे की राजनीति को बहुत क़रीब से देखा. युवा इंदिरा की छवि आधुनिक विचारों वाली भारतीय महिला की थी, जो साइंटिफिक प्रोग्रेस तो चाहती है लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ.

आज़ादी के बाद ज्वाइन की कांग्रेस

इंदिरा विचारों से सेक्युलर थीं. इंदिरा ने आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की और सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की. इंदिरा ने 1959 में कांग्रेस की अध्यक्षता भी की. ऐसा माना जाता है कि केरल की पहली वामपंथी सरकार को गिराने में उनका अहम् रोल था. इंदिरा के बाद कांग्रेस की अध्यक्षता नीलम संजीवा रेड्डी को मिली और उसके बाद कामराज को.

1964 में जवाहर लाल नेहरु की मौत हो गई. पिता के निधन ने न सिर्फ़ इंदिरा को हिलाया बल्कि पूरा देश ग़म में डूब गया. कांग्रेस अध्यक्ष कामराज को ये भी चुनाव करना था कि उनकी पार्टी का वो कौन सा नेता होगा जो देश की सत्ता को संभालेगा. (Indira Gandhi ko kaise mili PM ki kursi?) कांग्रेस के अन्दर से कुछ लोग मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाने की माँग करने लगे तो वहीं दूसरे इस बात का विरोध करते दिखे.

कामराज को नहीं पसंद थे मोरारजी देसाई

असल में मोरारजी देसाई को रूढ़िवादी समझ का दक्षिणपंथी नेता माना जाता था. कांग्रेस के सेक्युलर नेताओं ने इसका विरोध किया. कामराज ने लाल बहादुर शास्त्री के नाम का एलान किया और मोरारजी देसाई को रोकने के लिए कामराज को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन करने की अपील की. आख़िर सौम्य छवि के लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री चुना गया. शास्त्री नेहरु के विचार पर चलने वाले एक समाजवादी नेता थे.

इस तथ्य से ये बात साफ़ है कि नेहरु के निधन के समय इंदिरा को प्रधानमंत्री न तो बनाया गया और न ही इस पर विचार भी किया गया. लाल बहादुर शास्त्री सरकार में इंदिरा को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया. वो राज्यसभा सदस्य चुनी गईं.

11 जनवरी 1966 को सोवियत यूनियन के शहर ताशकेंट में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. शास्त्री के निधन के बाद एक बार फिर देश पर राजनीतिक संकट आ गया. प्रधानमंत्री पद के लिए एक बार फिर मोरारजी देसाई का नाम सामने आने लगा और कांग्रेस अध्यक्ष कामराज नहीं चाहते थे कि देसाई प्रधानमंत्री चुने जाएँ. बहुत सोच समझकर उन्होंने इंदिरा गांधी का नाम आगे किया.

इंदिरा का नाम आगे करने के कामराज के पास कई कारण थे- (Indira Gandhi ko kaise mili PM ki kursi)

कामराज चाहते थे कि प्रधानमंत्री ऐसा हो जो कांग्रेस अध्यक्ष की बात सुने, इसलिए वो कमज़ोर प्रधानमंत्री चाहते थे और तब इंदिरा की छवि एक कमज़ोर नेता की थी. दूसरा कारण ये था कि इंदिरा भले कमज़ोर छवि की थीं लेकिन नेहरु का नाम जुड़े होने की वजह से आम जनता उन्हें एक्सेप्ट कर लेगी और साथ ही कांग्रेसी नेताओं का विरोध भी टिक नहीं पायेगा. कामराज ने इंदिरा के पक्ष में पूरी ताक़त लगा दी और इंदिरा प्रधानमंत्री चुनी गईं.

इतिहासकार और राजनीतिक विशेषग्य बताते हैं कि इंदिरा का शुरूआती कार्यकाल कमज़ोर प्रधानमंत्री का ही था. हालाँकि वक़्त के साथ उन्होंने अपनी कार्यशैली बदली और कुछ ही साल में कण्ट्रोल पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया.

तो वो बातें जो आप व्हाट्सअप पर पढ़ते हैं या किसी चौंकाने वाले वीडियो में देखते हैं कि नेहरु ने इंदिरा को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, वो सब झूठ है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *