हज़रत ईसा अ० स० का एक बस्ती पर गुज़र हुआ। देखा तो सब बर्बाद हूए पड़े हैं। हज़रत ईसा अ० स० ने फ़रमाया कि इन पर अल्लाह के अज़ाब का कोड़ा बरसा है। हज़रत ईसा अ० स० को अल्लाह तआला की तरफ़ से यह कुदरत हासिल थी कि उनकी आवाज़ पर मु-र्दे ज़िंदा हो जाते थे।आप ने आवाज़ दी कि ऐ बस्ती वालों जवाब दो। जवाब आया लबबेक या नबी। हज़रत ईसा अ० स० ने फ़रमया ,तुम्हारा गुनाह क्या था और तुम किस वजह से हलाक हुए हो ? आवाज़ आई, हमारे दो काम थे जिसकी वज्ह से हम हलाक हुए.
एक तो हमें दुनिया से मुहब्बत थी ,एक तग़ावियत के साथ मुहब्बत थी। हज़रत ईसा अ० ,स० ने तगावियत से मुहब्बत का क्या मतलब है? आवाज़ आई, बुरे लोगों का साथ देते थे और बुरो की सोहबत मे बैठते थे। पूछा दुनिया की मुहब्बत से क्या मतलब है ? आवाज़ आई, दुनिया से मुहब्बत इस तरह थी जिस तरह माँ अपने बच्चे से मुहब्बत करती है। जब दुनिया हाथ आती थी तो हम खुश होते थे और जब दुनिया हाथ से निकलती थी तो हम ग़मगीन होते थे। हलाल औ हराम का ख़याल किये बगैर दुनिया कमाते थे और जायज़ औ नाजायज़ का ख्याल किये बगैर दुनिया ख़र्च करते थे। इस पर हमारी पकड़ हुई। हज़रत ईसा अ० स० ने फ़रमाया ,फिर तुम्हारे साथ क्या हुआ। आवाज़ आई, रात को हम सब अपने घरों मे सोये हुए थे, जब सुब्ह हुई तो हम सब हाविया मे पहुंच गये।पूछा यह हाविया क्या है ? जवाब आया हाविया सिज्जीन है।
पूछा यह सिज्जीन क्या है? आवाज़ आई ,सिज्जीन वह कैदखाना है जिसका एक अंगारा सातों ज़मीनों आसमान से बड़ा है और हमारी रुहो को इनमें दफ़्न किया गया है। हज़रत ईसा अ०स० ने पूछा तुम्हीं एक बोल रहे हो ,दूसरे क्यों नहीं बोलते ?आवाज़ आई, बाकी सब को आग की लगामें चढ़ी हुई हैं। मेरे मुँह मे नहीं लगी ,इसलिए बोल रहा हूँ। फ़रमाया ,तू कैसे बचा हुआ है? आवाज़ आई मै इनके साथ तो रहता था लेकिन इनके जैसे काम नहीं करता था। इनके साथ रहने की वज्ह से पकड़ा गया ,अब किनारे पर बैठा हुआ हूँ। नहीं जानता कि नीचे गिरता हूँ या अल्लाह तआला अपने करम से मुझे बचाता है।