1989 तक ये सीट थी कांग्रेस पार्टी का गढ़, क्या हुआ कि उसके बाद हुआ बुरा हाल..

Gonda LokSabha Seat History

Gonda LokSabha Seat History

Gonda LokSabha Seat History. Gonda गोंडा उत्तर प्रदेश के पूरब में पड़ने वाला एक ज़िला है. गोंडा लोकसभा सीट में कुल पाँच विधानसभा सीटें हैं. इन पाँच विधानसभा सीटों में से उतरौला बलरामपुर ज़िले के अंतर्गत आती है जबकि बाक़ी चारों गोंडा ज़िले में आती है. गोंडा लोकसभा में उतरौला के अलावा मेहनौन, गोंडा, मनकापुर, और गौरा आते हैं. फ़िलहाल गोंडा से कीर्ति वर्धन सिंह सांसद हैं.

इस लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो गोंडा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ और कांग्रेस के टिकट पर चौधरी हैदर हुसैन ने चुनाव जीता. 1957 में दिनेश प्रताप सिंह और 1962 में राम रतन गुप्ता ने कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव जीता.  1989 तक गोंडा लोकसभा सीट में कुल 11 बार चुनाव हुए. 10 बार में से दो बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस चुनाव हारी जबकि 1971 में यहाँ से कांग्रेस (ओ) ने चुनाव जीता.

ऐसा कहा जा सकता है कि ये सीट 1989 तक कांग्रेस का गढ़ रही. इमरजेंसी के बाद हुए 1977 लोकसभा चुनाव में भले यहाँ से कांग्रेस(Congress) हार गई और जनता पार्टी के सत्य देव सिंह ने चुनाव जीता लेकिन 1984 में कांग्रेस ने शानदार वापसी भी की.

इन कारणों से बदला माहौल..

80 के दशक के अंत तक देश का माहौल अलग दिशा में जाने लगा. राजनीतिक समीकरण धार्मिक उन्माद और जातिगत मुखरता से तय होने लगे.  राजीव गांधी सरकार पर घोटालों के आरोप लगने लगे जिसका नुक़सान संगठन पर पड़ा और कांग्रेस पार्टी के अन्दर कई नेता पार्टी छोड़ने लगे. इसी समय कांग्रेस के पूर्व नेता वीपी सिंह ने जनता दल बनाई. जहाँ कांग्रेस आंतरिक झटकों से परेशान थी वहीं भाजपा जैसी नई पार्टी बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद को राजनीतिक करने में लगी थी. Gonda LokSabha Seat History

राम मंदिर आन्दोलन चलाकर भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की.वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफ़ारिश लागू कर ओबीसी को आरक्षण की व्यवस्था की. इसके विरोध में भाजपा ने सामान्य जातियों को एकजुट करने की कोशिश की.  भाजपा को इसका फ़ायदा भी मिला और सन 1991 में भाजपा के बृज भूषण शरण सिंह ने चुनाव जीता. 1996 में भाजपा के केतकी देवी सिंह ने चुनाव जीता. इस दौरान क्षेत्र में समाजवादी पार्टी उभर कर आयी.

सपा ने बनाई पकड़..

1998 में यहाँ से सपा के टिकट पर कीर्ति वर्धन सिंह ने चुनाव जीता. 1999 में भाजपा ने फिर से वापसी की और बृज भूषण शरण सिंह फिर विजयी हुए. 2004 में सपा के कीर्ति वर्धन सिंह ने वापसी की और भाजपा की हार हुई. इन सालों में कांग्रेस क्षेत्र में पूरी तरह से सिमट चुकी थी लेकिन 2009 में कांग्रेस ने अप्रत्याशित वापसी की और वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने चुनाव जीता.

2014 में भाजपा के पक्ष में लहर दिखी. कीर्ति वर्धन सिंह ने भाजपा के टिकट पर बड़े अंतर से चुनाव जीता. 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो सपा और बसपा दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा. सपा-बसपा के गठबंधन ने यहाँ से सपा के विनोद कुमार को टिकट दिया लेकिन भाजपा के कीर्ति वर्धन सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

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