बेंगलुरु: कर्णाटक सरकार(Karnataka Government) ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन जो बेंगलुरु से प्रवासी मज़दूरों को उनके गृह राज्य वापिस ले जा रही थी, को रद्द कर दिया है. ये ट्रेन मज़दूरों को उनके गृह जनपद ले जा रही थी. मुख्यमंत्री बीएस येदयुरप्पा(BS Yedyurappa) सरकार द्वारा लिए गए इस फ़ैसले के पीछे वजह उनकी बिल्डरों से मुलाक़ात को माना जा रहा है. येदयुरप्पा ने ये फ़ैसला बड़े बिल्डरों के साथ मीटिंग के बाद किया. मंगल के रोज़ मुख्यमंत्री ने व्यापारियों से, निर्माण और अन्य उद्योग से जुड़े लोगों से मुलाक़ात की.
कर्नाटक के अंतर्राज्यीय यात्रा के लिए नोडल अधिकारी एन. मंजूनाथ प्रसाद ने देर रात इस संबध में राज्य सरकार की तरफ़ से एक पत्र साउथ वेस्टर्न रेलवे (SWR) को लिखा है. इस ख़त में साफ़ लिखा है कि बुधवार से श्रमिक स्पेशल ट्रेन नहीं चलेगी. 5 मई की तारीख़ के इस ख़त में लिखा है,”हमने पांच दिनों तक रोज दो ट्रेनों की व्यवस्था करने को कहा था। ये ट्रेनें बिहार के दानापुर जानी थीं। कल (बुधवार) से ट्रेन सेवाओं की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उपरोक्त संदर्भ के तहत पहले लिखा गया पत्र वापस लिया जाता है।”
बिल्डर्स के साथ बैठक करने के बाद मुख्यमंत्री येदयुरप्पा ने ट्वीट किया,”मंत्रियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे मज़दूरों को उनके गृह जनपद न जाने के लिए मनाएं।” श्रम विभाग के सचिव कैप्टन मणिवन्नन ने ट्वीट किया,”अब, लॉकडाउन हटाए जाने के बाद ही वे (मज़दूर) जा सकते हैं। हम उनकी देखभाल करेंगे।” एसडब्ल्यूआर ने राज्य सरकार के साथ मिलकर रविवार से आठ ट्रेनों का संचालन किया था और 9,583 श्रमिकों के जाने की व्यवस्था की गई थी.
एक वेबसाइट में छपी ख़बर के मुताबिक़, एसडब्ल्यूआर ने इन वर्कर्स को दानापुर (तीन ट्रेनों), भुवनेश्वर, हटिया, लखनऊ, बरकाकाना और जयपुर भेजा. दूसरे राज्यों के कई लाख प्रवासी कामगार अभी भी यहां फंसे हुए हैं और अपने घर वापस जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. कर्णाटक सरकार ने ट्रेन टिकट का किराया भी फ़िक्स किया था जो इस प्रकार था- बेंगलुरु से दानापुर के लिए प्रत्येक यात्री 910 रुपये, बेंगलुरु से जयपुर के लिए 855 रुपये, 770 रुपये हावड़ा के लिए, 760 रुपये, हटिया के लिए, 665 रुपये भुवनेश्वर के लिए, 830 रुपये चिकबनवाड़ा से लखनऊ के लिए 790 रुपये मलूर से बरकाकना के लिए किराया रखा गया था. इसके अलावा 30 रुपए सुपर फ़ास्ट और 20 रुपए अतिरिक्त शुल्क का लिया गया था. श्रमिकों से बसों का किराया भी लिया गया था.