लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माने जाने वाले इन चुनावों में सभी दलों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। जिला पंचायत सदस्यों के चुनावों में जहां मुख्य विपक्षी दल सपा ने बड़ी जीत हांसिल करके साबित कर दिया था कि सपा की पकड़ सूबे में क’मज़ोर नही पड़ी है। वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी दल बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इस हार से बीजेपी की काफी कि’रकिरी हुई थी। जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में हा’र के बाद से ही बीजेपी के अंदरखाने में नेतृत्व के खि’लाफ वि’द्रोह के सुर फू’टने लगे थे।
इन सब को शांत करने के लिए बीजपी के राष्ट्रीय नेताओं ने लखनऊ में डे’रा डालकर के ता’बड़तोड़ बैठके शुरू करके लगभग 65 जिला पंचायत अध्यक्ष के पद को जीतने का लक्ष्य तय किया था। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा को जिला पंचायत सदस्यों के चुनावो में कोई खास सफलता हासिल नही हुई थी। बसपा लगभग 350 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी। कांग्रेस का ल’चर प्रदर्शन इन चुनावों में भी जारी था। जिला पंचायत सदस्यों के चुनावों में लगभग 350 सीटें जीतने वाली बसपा किसी भी जिले में अध्यक्ष पद जीतने की स्थिति में नही है। लेकिन वो इस हालत में ज़रूर है कि अध्यक्ष पद को जिताने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
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— Mayawati (@Mayawati) June 28, 2021
इन्ही सब अ’टकलों के बीच मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने घोषणा की है कि बहुजन समाज पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव नही लड़ेगी। मायावती की घोषणा से सपा के चेहरे का रंग फी’का पड़ गया तो वही भाजपा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। बसपा के जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने से बीजेपी के जीत का रास्ता सुगम हो गया है वहीं सपा की राह में रो’ड़ा अटका दिया है। मायवती हमेशा से ही अपने चौं’काने वाले निर्णयों के लिए जानी जाती रहीं हैं। उन्होंने इस बार भी सबको है’रान कर दिया है। विपक्षी दल बसपा पर आ’रोप लगाते हुए इसे अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के साथ हुआ समझौता बता रहा है। जानकारों का कहना है कि बसपा का यह निर्णय आगामी विधानसभा चुनावों में होने वाले ग’ठजोड़ की झलक को भी दिखाता है।