गुजरात भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है. गुजरात की समुद्री सीमा भारत के किसी भी राज्य की समुद्री सीमा से बड़ी है. बड़ी समुद्री सीमा होने की वजह से राज्य में व्यापार भी ख़ूब फला-फूला है. इसका स्ट्रेटेजिक महत्व इसलिए और भी अधिक है क्यूँकि इसकी सीमा पड़ोसी देश पाकिस्तान से मिलती है.
गुजरात एक समय बॉम्बे स्टेट के अंतर्गत था. गुजरात को राज्य का दर्जा 1 मई 1960 को मिला. गुजरात बॉम्बे स्टेट से कैसे अलग हुआ इस बात को समझने के लिए हमें दक्षिण के भाषाई आन्दोलन को समझना होगा. आज़ादी के कुछ साल बाद ही दक्षिण के कई इलाक़ों में भाषाई आन्दोलन शुरू हो गए. मद्रास स्टेट से तेलुगु भाषा के लोगों के लिए अलग राज्य की माँग ने ज़ोर पकड़ा. आन्दोलन के प्रमुख नेता पोट्टी श्रीरामुलु ने इसको लेकर भूक हड़ताल कर दी और 56 दिनों की भूक हड़ताल के बाद 15 दिसंबर 1952 की रात और 16 दिसंबर की सुबह होने से कुछ पहले उनका देहांत हो गया. श्रीरामुलु की मौत ने आन्दोलन को हिंसक बना दिया. श्रीरामुलु के समर्थक बेक़ाबू हो गए और केंद्र सरकार को जनता की माँग के आगे झुकना पड़ा. 19 दिसंबर 1952 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने तेलुगु बोलने वाले लोगों के लिए आंध्र स्टेट बनाए जाने का एलान कर दिया.
नेहरु के इस फ़ैसले ने बाक़ी भाषाई नेताओं को अपना आन्दोलन तेज़ करने का मौक़ा दिया. अगस्त 1953 को केंद्र सरकार ने राज्य-पुनर्गठन आयोग बनाया जिसकी अध्यक्षता फ़ज़ल अली ने की. अक्टूबर 1955 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. इस रिपोर्ट के आने के बाद राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन की चर्चाएँ तेज़ चलने लगीं. गुजरात इस समय बॉम्बे स्टेट के अन्दर ही आता था जिसमें मराठी और गुजराती भाषा बोलने वाले लोग थे. गुजराती नेताओं ने इस समय ही गोलबंदी तेज़ की. बॉम्बे स्टेट के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई अलग राज्य की माँग के ख़िलाफ़ थे. मोरारजी ख़ुद गुजराती थे लेकिन उनका मानना था कि ऐसा करने से विकास की गति कमज़ोर पड़ जाएगी.
8 अगस्त, 1956 को अहमदाबाद के कुछ कॉलेज छात्र लोकल कांग्रेस कार्यालय पहुँचे और अलग राज्य की माँग करने लगे. मोरारजी देसाई ने उनकी माँग को सिरे से ख़ारिज कर दिया. इसके बाद पुलिस ने छात्रों से लौटने को कहा लेकिन छात्र नहीं माने जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया. पुलिसिया दमन में 5 से आठ छात्रों की मौत हो गई. पूरे राज्य में ज़बरदस्त प्रदर्शन शुरू हो गए. वरिष्ठ नेता इन्दुलाल याग्निक अपने रिटायरमेंट से वापिस आए और महागुजरात जनपरिषद की स्थापना की और इसके साथ ही महा-गुजरात आन्दोलन की शुरुआत हो गई.
प्रदर्शन पूरे राज्य में शुरू हो गए. सरकार ने इन्दुलाल याग्निक, दिनकर मेहता और धनवंत श्रॉफ़ समेत कई नेताओं को अहमदाबाद की सेंट्रल जेल में डाल दिया. छोटे बड़े हर गुजराती नेता ने अपने अपने स्तर पर प्रदर्शन करना शुरू किया. सरकार दबाव महसूस कर रही थी. जहाँ बॉम्बे स्टेट के एक हिस्से में गुजराती आन्दोलन चरम पर था वहीं दूसरे हिस्से में संयुक्त महाराष्ट्र समिति ने सरकार की नाक में दम किया हुआ था. महाराष्ट्र राज्य की माँग को लेकर मराठी नेता एकजुट थे और हालत ये थी कि मराठी क्षेत्रों में कांग्रेस पार्टी अपना समर्थन खोती जा रही थी.
महागुजरात के नेता इस बात को समझ रहे थे. वहीं राज्य में फिर से सब कुछ ठीक हो इसके लिए मोरारजी देसाई ने हफ़्ते भर का फ़ास्ट रखा.मोरारजी को उम्मीद थी कि उनके समर्थन में लोग आगे आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आन्दोलन के नेताओं ने जनता-कर्फ्यू लगा रखा था और ऐसा लगा कि जैसे वाक़ई कर्फ्यू लगा हो. देसाई का ये क़दम फ़ेल हो गया.
सरकार इस बात को समझ गई कि अब किसी और तरह की कोशिश करना बेकार है. सरकार ने बॉम्बे स्टेट से गुजरात और महाराष्ट्र दो राज्यों को बनाने का फ़ैसला किया. मुंबई और डांग को लेकर काफ़ी विवाद रहा कि ये किस राज्य में जाएँ. आख़िर में मुंबई महाराष्ट्र को मिला और डांग गुजरात को.
1 मई 1960 को गुजरात राज्य की स्थापना हुई. आन्दोलन की कामयाबी के साथ ही महागुजरात परिषद भंग कर दी गई. जीवराज मेहता ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.